राग बिलाप-२७अब मैं भूली गुरु तोहार बतिया,डगर बताब मोहि दीजै न हो। टेकमानुष तन का पाय के रे नर,क्योंतन छूटे मन घोड़ा होइहैं,मुखमन घोड़ा तन पालकी,होइहै नैन सब अग।हसा चलिहै या नगरी से,ज्ञानन भजे हरिनाम ।प परिहैआगि लगे बैकुण्ठ में ही,घमसाना।23भूले चले संग।कहैं कबीर सुनो भाई साधो,लगाम ।जर जर गिरे सिंगान ।जियरा और करेंगे सिंगार।
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