गजल-३१
सकल जग
कृपासिंधो ! मुझे अपना बना लोगे तो क्या होगा।
जरा सतनाम कानों में सुना दोगे तो क्या होगा।
दया करने को जीवों पर जो तुम दुनिया में आये हो।
मेरी भी तरफ दृष्टी झुका दोगे तो क्या होगा।
पतित पावन तुम्हारा नाम जाहिर है।
अगर मुझ एक पापी को भी तारोगे तो क्या होगा।
अखण्डित ज्ञान की धारा बहाके परम सुखदाई
प्रबल त्रैताप की अपनी बुझा दोगे तो क्या होगा
परम सिद्धान्त वेदों का लखाके आतमा मुझको,
मेरे दिल से अविद्या को हटा दोगे तो क्या होगा
कई मुद्दत से गोते खा रहा होगा विचार में।
सहारा देके चरणों का बचा दोगे तो क्या होगा।
पड़ी है आन अब मेरी प्रभु मझधार में नैया ।
खेवइया बन किनारे पर लगा दोगे तो क्या होगा।
अरज धर्मदास की प्रभु जी फकत चरणों में ये है कि
जनम अरु मरण के दुःख से छुड़ा दोगे तो क्या होगा।
सकल जग
कृपासिंधो ! मुझे अपना बना लोगे तो क्या होगा।
जरा सतनाम कानों में सुना दोगे तो क्या होगा।
दया करने को जीवों पर जो तुम दुनिया में आये हो।
मेरी भी तरफ दृष्टी झुका दोगे तो क्या होगा।
पतित पावन तुम्हारा नाम जाहिर है।
अगर मुझ एक पापी को भी तारोगे तो क्या होगा।
अखण्डित ज्ञान की धारा बहाके परम सुखदाई
प्रबल त्रैताप की अपनी बुझा दोगे तो क्या होगा
परम सिद्धान्त वेदों का लखाके आतमा मुझको,
मेरे दिल से अविद्या को हटा दोगे तो क्या होगा
कई मुद्दत से गोते खा रहा होगा विचार में।
सहारा देके चरणों का बचा दोगे तो क्या होगा।
पड़ी है आन अब मेरी प्रभु मझधार में नैया ।
खेवइया बन किनारे पर लगा दोगे तो क्या होगा।
अरज धर्मदास की प्रभु जी फकत चरणों में ये है कि
जनम अरु मरण के दुःख से छुड़ा दोगे तो क्या होगा।