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भजन ताल दादरा-३३
मैं बारी जाऊँ सतगुरु,
को मेरी किया भरमस दूर। टेक
सजीवन मोर ।
ज्वाला पंथी प्रम का,
खोरि
खुमारी नाम की,
ममता
चढ़ी
विमल प्रकाश आकाश में,
हो गई चकनाचूर में वा०
इख्यो बिना शशि सूर
मंगन भयो मन गगन में,
सुनिके अनहद तूर। मैं वा०
घटी क्षमता बढ़ी,
ईर
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अन्दर भरपूर । 
राग द्वेस जग
से मिटयों,
अस मन भयो मधुर । मैं वा०
आगी
शब्द सुनत यमदूत के,
मुख में
आय मिले कर्मदास को,
दीक्षा लेने
धूर |
सतगुरु हाल हजूर। मैं वा०
के पश्चात्,
सतगुरु का
उपकार माना।
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