1 second read
0
0
138
राग बिलाप-२७
अब मैं भूली गुरु तोहार बतिया,
डगर बताब मोहि दीजै न हो। टेक
मानुष तन का पाय के रे नर,
क्यों
तन छूटे मन घोड़ा होइहैं,
मुख
मन घोड़ा तन पालकी,
होइहै नैन सब अग।
हसा चलिहै या नगरी से,
ज्ञान
न भजे हरिनाम ।
प परिहै
आगि लगे बैकुण्ठ में ही,
घमसाना।
23
भूले चले संग।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो,
लगाम ।
जर जर गिरे सिंगान ।
जियरा और करेंगे सिंगार। 
Load More Related Articles
Load More By amitgupta
  • शब्द-२६ जो लिखवे अधम को ज्ञान। टेकसाधु संगति कबहु के कीन्हा,दया धरम कबहू न कीन्हा,करजा काढ…
  • राग परजा-२५अब हम वह तो कुल उजियारी। टेकपांच पुत्र तो उदू के खाये, ननद खाइ गई चारी।पास परोस…
  • राग झंझोटी-२८सुतु ब्रह्म जन्म गंववसे हरि भक्ति बिना टेकका धेअंगोछा धारे,तिलक चढ़ाए चन्दना।…
Load More In Uncategorized

Leave a Reply

Check Also

What is Account Master & How to Create Modify and Delete

What is Account Master & How to Create Modify and Delete Administration > Masters &…