चोर की दाढ़ी मे तिनका
वर वुद्धिःना सा विद्या?
एक व्यापारी कहीं व्यापार के लिए जा रहा था। रात्रि हो जाने पर वह एक धर्मशाला में रूक गया। प्रात: होने पर उसे पता चला कि उसकी अशर्फियां गायब हैं । उसने राजा के पास जाकर प्रार्थना की जिस धर्मशाला में रात को वह सोया था, वहा से मेरी अश्र्फियों की थेली चोरी हो गई है। आप चोर को पकडव कर मेरी अशर्फियों की थेली दिलाने की कृपा करें।
राजा ने यह केस अपने मंत्री को सौंप दिया और कहा कि अपराधी को शीद्य पकजड़कर अशर्फिया प्राप्त की जायें तथा अपराधी को उचित दण्छ देने की कृपा कररें।
राजा कि आज्ञा पा कर मंत्री ने धर्मशाला के सभी यात्रियों को बुलवाया और उन्हें लकड़ी के बराबर बराबर के टुकड़े देते हुए कहा–भाइयों ! मैं तुम्हें यह लकड़ी के टुकड़े दे रहा हू।तुम इन्हें सावधानी पूर्वक अपने पांस संभाल कर रखना । जिस व्यक्ति ने थेली चुराई है उसकी इस -टुकड़ा से ऊँगली बढ़ जाएगी । । ।
इसके बाद सभी लोगो को अलग-अलग कमरों में बन्द कर दिया। ऊनमें से जिस यात्री ने थेली चुराई थी तो उसने सोचा वकि सुबह तो मेरी लकड़ी से उँगली अवश्य बढ़ जायेगी । इसलिए उसने सोचा की क्यों न में इस लकड़ी से ऊँगली कम कर दूँ । यह उसने अपनी लकड़ी से दो ऊँगली तोड़कर छोटी कर ली। प्रात:काल मंत्रीजी ने सबको अपने पास बुलाया तो एक आदमी की लकड़ी को दो अंगुल छोटा पाया। फिर क्या था मंत्री ने उसको पकड़ लिया और तलाशी लेने पर उसके पास से थैली भी प्राप्त हो गई। मंत्री ने उस चोर को राजा के सम्मुख उपस्थित कर दिया। राजा ने चोर को उचित दण्ड देकर दण्डित किया।