सत्संग का प्रभाव
जाड़े का मौसम था। वर्षा प्रारम्भ होने पर एक साधु महात्मा एक मकान के नीचे खड़े हो गये। वह मकान एक वैश्या का था। ठण्ड बढ़ जाने के कारण महात्माजी को ठंड से कांपते देखकर उस वैश्या ने महात्माजी को ऊपर बुलाकर ओढ़ने के लिए एक दुशाला दे दिया।
रात्रि को खाना खिलाकर वैश्या महात्माजी के पाँव दबाने लगी। महात्मा जी को नींद आ गई। प्रातः होने पर महात्मा जी उठकर वहां से चल दिये। वैश्या जब उठी तो उसे महात्माजी के चले जाने की खबर अपनी नौकरानी से मिली। महात्माजी के इस निस्पृह व्यवहार से वह बड़ी प्रभावित हुईं और स्वयं साधु बन गई।
एक राजा उससे प्रेम करता था। उसने वैश्या से पूछा तुम साधु क्यों बन गयीं? उसने उत्तर दिया कि अब में वह नीच नहीं रही हूँ जो संसार की बुरी वस्तुओं में कीड़े की तरह लगी रहू।