Home Kabir ke Shabd अमृत ऐसे वचन में Kabir Bhajan 11

अमृत ऐसे वचन में Kabir Bhajan 11

0 second read
0
0
56

अमृत ऐसे वचन में

अमृत ऐसे वचन में, रहिमन रिस की’ गांस।

जैसे मिसिरिहु में मिली, निरस बांस की? फांस।।11 ।।

अर्थ—जैसे मिश्री में नीरस बांस की फांस मिल जाती है, उसी रहीम कवि कहते हैं कि अमृत जैसे मृदु वचनों में क्रोध की गांठ आ जाती है?

भाव—रहीम कवि यहां क्रोध को उचित नहीं मानते। क्रोध से मीठे वचन भी उसी प्रकार कटु हो जाते हैं, जिस प्रकार मिश्री की डली में बांस की फांस निकल आती है। बांस की फांस मिश्री के स्वाद को बदमजा कर देती है। उसी तरह क्रोध करने वाले व्यक्ति के मीठे बोल भी कड़वे लगने लगते हैं। यदि कोई व्यक्ति मधुर वचन बोलता है तो उसे क्रोध कभी नहीं करना चाहिए। उसे सदैव सावधान रहना चाहिए कि उसके गुस्से से किसी दूसरे के हृदय को ठेस न पहुंच जाए। |
Load More Related Articles
Load More By amitgupta
Load More In Kabir ke Shabd

Leave a Reply

Check Also

What is Account Master & How to Create Modify and Delete

What is Account Master & How to Create Modify and Delete Administration > Masters &…