ध्यान में रूचि रखने वाले, अवलोकन करें! ‘तन का तनिक भरोसा नाहीं, काहे करत गुमाना रे’ – इस कबीर भजन के माध्यम से हम कविराज के उद्धारणों को समझेंगे, जो हमें तन, मन, और आत्मा के संबंध पर विचार करने के लिए प्रेरित करेगा। एक माध्यम से अनुभव करें और आत्मा के साथ अदृश्य जुड़े रहने का आदर्श सीखें।
कबीर भजन
तन का तनिक भरोसा नाहीं, काहे करत गुमाना रे।
टेढ़ चले मरोड़ मूंछे, विषय याहि लिपटाना रे।
ठोकर लगे चेतकर चलना,कर जान प्रान पियारा रे।
मेरा मेरा करते डोले,माया देख लुभाना रे।
या बस्ती में रहना नाहीं, साचा धर उठ जाना।
मीर फकीर और जोगी, रहा ना राजा रानी रे ।
पर तक तक मारे काल, अचानक बाना रे।
काम क्रोध मद लोभ छोड़कर, शरध धनी के आना रे।
कहत कबीर सुनो भाई सन्तो
बिसरि नाम तिरलोकहु नहीं ठिकाना रे।