आदर घटे नरेस ढिंग
आदर घटे नरेस ढिंग, बसे रहे कछु नाहिं।
जो रहीम कोटिन मिले, धिग जीवन जग माहिं।। 14 ।।
अर्थ—राजा के समीप सदा निवास करने से सम्मान में कमी आती है और कुछ प्राप्त नहीं होता । कवि रहीम कहते हैं कि यदि व्यक्ति करोड़ों में सम्मिलित हो जाए तो उसकी कोई पहचान नहीं होती। ऐसे जीवन को धिक्कार है।
भाव—रहीम कवि का कहना है कि मनुष्य को अपनी पहचान कभी नहीं खोनी चाहिए, जो व्यक्ति राजा के निकट हर समय लगे रहते हैं, वे चापलूस और खुशामदी कहलाते हैं। उस व्यक्ति की अपनी कोई व्यक्तिगत पहचान नहीं होती । इसी प्रकार जो लोग भीड़ में मिल जाते हैं, उनकी भी कोई पहचान या विशेषता दिखाई नहीं पड़ती। वे भीड में मिलकर भीड़ के ही अंग बन जाते हैं, किंतु जो व्यक्ति भीड़ से अलग होकर अपने गुणों का विकास करते हैं, वे अलग ही पहचाने जाते हैं। वे भीड़ के पीछे नहीं, भीड़ उनके पीछे चलती है। अपनी पहचान खोकर चलने वाले का जीवन व्यर्थ होता है।