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इस सतसंग रूपी लाल की – Is Satsang Rupi Lal Ki – Kabir Bhajan

Is satsang Rupi Lal Kabir Bhajan

Kabir Ke Shabd

इस सतसंग रूपी लाल की,
कोई कद्र करेगा जौहरी
के जाने कोई मुर्ख बनिया
,बेच रहा हो सुंठ और धनिया
होवे लाल बतावे मनिया
बिन राजा सजे ना पालकी
के बैठ सके कोई छोहरी
बेच रहा जो मूली गाजर,
के जोहरी के होए बराबर।
कहाँ लेट और कहाँ है सागर
तने खबर ना अपने माल की
नित उठ के हो रही चोरी।
कहाँ है पारस कहाँ है रोड़ा,
कहाँ गधा और कहाँ है घोड
इन दोनों का ना मिलता जोड़ा
तने खबर ना अपनी चाल की
न्यूए धींगा मस्ती हो रही।
सतगुरु जौहरी पे जो जावे,
वो लालां की खबर बतावे
हरिदास न्यू कथ के गावे
तेरे सिर पे घुंडी काल की
भाजेगा कौनसी मौरी
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