Home Kabir ke Shabd एक उदर दो चोंच हैं – कवि रहीम -19

एक उदर दो चोंच हैं – कवि रहीम -19

0 second read
0
0
44

एक उदर दो चोंच हैं

एक उदर दो चोंच हैं, पंछी एक कुरंड।

कहि रहीम कैसे जिए, जुदे जुदे दो पिंड।। 19 ॥।

अथ  –साकुरंड (पीली कटसरैया) पौधे पर बैठे पक्षी का पेट तो एक ही है, किंतु उसकी चोंच दो हैं , रहीम कवि कहते हैं कि दोनों चोंचों के अलग-अलग रहने पर उसका पेट नहीं भर सकता । इसका एक अर्थ यह भी है कि कैंची के दो फलक हैं। दोनों एक मध्य जोड़ (पेट) से जुड़े हैं। रहीम कवि कहते हैं कि शान चढ़ाने वाला पत्थर दोनों फलक पर ही शान चढ़ाता है, तभी वे दोनों फलक मिलकर कार्य करते हैं।
भाव—इस दोहे का भाव यही है कि प्रयास किए बिना जीव अपना पेट नहीं भर सकता। परमात्मा ने सभी जीवों को पेट दिया है, किंतु कर्म किए बिना अर्थात जब तक वह जीव प्रयास नहीं करेगा, भोजन मुख में डालने के उपरांत उसे चबाएगा नहीं, तब तक उसका पेट नहीं भर सकता। खुले मुख से कोई पदार्थ उदरस्थ नहीं किया जा सकता है।
Load More Related Articles
Load More By amitgupta
Load More In Kabir ke Shabd

Leave a Reply

Check Also

What is Account Master & How to Create Modify and Delete

What is Account Master & How to Create Modify and Delete Administration > Masters &…