नवरात्र के नौ दिन ही क्यों?
नवरात्र के दो अर्थ बतलाए गए हैं-प्रथम ‘नव” का अर्थ है नौ गतें, दूसर ‘नव’ का अर्थ हे-नया अर्थात् नई रातें। नवरात्र वर्ष में दो बार आते हैं पथम पर्व चेत्र मास में दूसरा पर्व आश्विन मास में आता है।
दुर्गा सप्तशती में देवी माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है “देवी ने इस विश्व को उत्पन्न किया है और वे जब भी प्रसन्न होती हैं तब मनुष्यों को मोक्ष प्रदान कर देती हैं। देवी दुर्गा नव विद्या हे, इसलिए उनकी उपासना के लिए नो दिन का समय निश्चित किया गया हे।
नवरात्र पूजन प्रतिपदा से लेकर नवमी तक चलता है। इस पूजन के लिए नौ दिन ही क्यों नियत किए गए हैं? यह सार्थक प्रश्न हैं। इस विषय में अलग-अलग तर्क दिए जाते हैं।
नवरात्र सम्पूर्ण वर्ष के दिनों का 40वां भाग हे। अर्थात अगर वर्ष के 360 दिनों का 9 की संख्या से भाग करें, तो हमें 40 नवरात्र प्राप्त होंगे। 40 दिनों का एक ‘मंडल’ कहलाता है ओर जप भी 40 दिन तक किए जाते हैं। इस प्रकार इन 40 नवरात्रों में 4 नवरात्र देवी भगवत पुराण के अनुसार महत्वपूर्ण बताए गए हैं। जिनमें से शारीदय एवं वासंतिक नवरात्र का ही अधिक महत्व हे इस दृष्टि से भी ‘शक्ति’ की उपासना 9 दिन करना ही उचित अनुभव
ता है।
तृतीय शक्ति के तीन गुण हैं-सत्व, रजस ओर तम। इनको तिगुना करने पर 9 की संख्या प्राप्त होती हैं। जिस प्रकार यज्ञोपवीत में तीन बड़े धागे होते हैं और उन तीनों में प्रत्येक धागा तीन तीन धागों से होता है। उसी प्रकार प्रकृति, योग एवं माया का त्रिवृत रूप नवविध ही होता है। दुर्गा की उपासना में उसके समग्र रूप की आराधना हो सके, इसी उद्देश्य से नवरात्र के “नौ दिन’ निश्चित किए गए हैं।
दुर्गा सप्तशती में देवी के सोलह रूपों का वर्णन किया गयः है। लेकिन मूर्तियों में उनके नौ ही स्वरूप हैं। देवी भागवत और वराह पुराण में भी नौ दुर्गा के नौ रूपों की ही चर्चा की गई है, जिन्हें नव दुर्गा कहा जाता है। रा के उग्र और शांत दोनों ही रूप हमें देखने को मिलते हैं। शांत रूप में कष्पा ऊषा, गौरी, अम्बिका आदि देवियों का उल्लेख है। जब्रकि ठप्र रूप में मा काली का रूप सर्वविदित है। इसलिए भी नौ रूपों के प्रतीक नत्रगत्र मनाए जाते हैं।
दुर्गा जो कि हिमालय की गत मानी जाती है उसे अपने घर बुलाने कै लिए उनकी मां ने प्रार्था की ओर दुर्गापति भगवान शिव ने वर्ष में नै दिनों के लिए ही यह आज्ञा दी। इन नो दिनों में भगवती दुर्गा विश्व में वियग्त करती है ओर इस उपलक्ष्य में अपने घर आई पुत्री की पूजा पूरे भारत बे शक्ति आराधना के रूप में सम्पन्न की जाती है।
One Response
Yes! Finally someone writes about Nakliyeci.