दक्षिणा क्यों देते हैं?
दक्षिणावतामिदमानि चित्रा दक्षिणावतां दिवि मूर्यास:।
दक्षिणावन्तो अमृतं भजते, दक्षिणावंत: प्रतिरंत आयु:॥ दक्षिणा प्रदान करने वालों के ही आकाश में तारागण के रूप में विव्य चमकीले चित्र हैं, दक्षिणा देने वाले ही भूलोक में सूर्य की भांति चमकते हैं दक्षिणा देने वालों को अमरत्व प्राप्त होता है और दक्षिणा देने वाले ही दीर्घायू होकर जीवित रहते हें। शास्त्रों में दक्षिणारहित यज्ञ को निष्फल बताया गया है जिस वेदवेत्ता ने हवन आदि कृत्य मंत्रोपचार करवाए हों, उसे खाली हाथ लोटा देना भला कौन उचित कहेगा?
भगवान् कहां रहता है? भगवान कौन है? भगवान
कब अस्तित्व में आया? भगवान को किसने देखा हे? प्राय: यह प्रश्न किया जाता हे-भगवान कौन है? और यह भगवान कहां रहता है? गीता में कृष्ण ने कहा है-‘मन की आंखें खोलकर देख, तू मुझे अपने भीतर ही पाएगा।’ भगवान कण-कण में व्याप्त हें।
‘ भगवान” नाम कब प्रारंभ हुआ? किसने यह नाम दिया, यह कोई नहीं जानता। जानने का प्रयत्न भी नहीं है। उत्तर खोजना है, तो सृष्टि के प्रारंभ की ओर जाना होगा। जब मानव धरती पर आया, तो भाषा नहीं थी। समाज ओर परिवार नहीं था। खेत नहीं थे, अनाज नहीं था। वस्त्र नहीं थे, पर पेट की भूख थी। भूख शांत करने के लिए कंद, मूल, पशु-पक्षियों का मांस जो मिला, खाया जाता था। अब प्रश्न यह उठ सकता है उसे खाना किसने सिखाया? यह प्रकृति का वरदान है। धीरे-धीरे मानव बुद्धि का विकास हुआ होगा। बुद्धि के बल पर उसने अनेक प्रकार की संरचनाएं की होंगी। आदि मनुष्य ने अनुभव किया होगा कि जन्म ओर मृत्यु पर उसका अधिकार नहीं। दिन-रात को भी वह रोक नहीं सकता।
ऋतुएं भी क्रमानुसार आती हैं। इन सब क्रियाओं का जनक कौन है? कोई तो है? पर वह दिखाई नहीं देता, इसलिए उसके रूप की कल्पना की जान लगी………जल सा निर्मल, चांद सा उज्जवल, मूर्य सगीखा महापरगक्रमी, नदी सा वेगवान, बादलों की गर्जना सा आंतक फैलाने वाला आदि। इसी क्रम मेँ पूजा, सेवा, आराधना, उपासना, साधना प्रकाश में आई। अपनी आम्था जतान॑ के लिए उसके लिए हवन किया गया। इसका प्रमाण मिलता है, हवन मं आहुति देते समय आहुति किस के नाम के प्रति दी जाती है। आदि मानव आहुति के समय कहता है………कस्मै देवाय हविप: विधेय? अर्थात् किस देवता के नाम पर आहुति दूं?
शनैःशने बुद्धि और ज्ञान का विकास हुआ। बुद्धि और ज्ञान के साथ अहम् भी जाग्रत हो गया। आज का बुद्धिमान मनुष्य ‘ भगवान नाम” का व्यापार कर रहा है। सम्भवतः वह स्वयं को अधिक शक्तिशाली समझने की शथरृष्टता में उलझ गया हे। प्रभु कभी जल प्लायन, कभी भूचाल किसी न किसी रूप में वह मनुष्य को उसका छोटापन जता देता है। गीता में कृष्ण ने कहा है……. .मन की आंखें खोलकर देख तू मुझे अपने भीतर पाएगा। भगवान कण-कण में व्याप्त है। भगवान हमारे भीतर ही विराजमान हैं, शेष स्थान तो उनको याद दिलाने के चिन्ह मात्र हें।