कार्तिक माह में स्नान का माहात्म्य क्यों?
कार्तिक माह के माहात्म्य के विषय में एक प्राचीन धारणा मिलती हे। कार्तिक स्नान ब्रह्मा के प्रति अर्चना है। विष्णु जी के प्रति किया गया स्नान उज्जेनी, त्रयम्बकेश्वर और कावेरी तीथों में संपन्न होते हैं। वहीं शिव के प्रति अर्पित स्नान हरिद्वार, कुरूक्षेत्र, रेणुका तीर्थ, गढ़गंगा, प्रयाग संगम, काशी व गया में किये जाते हें। ब्रह्म के लिए स्नान का एकमात्र स्थान तीर्थराज पुष्कर में निर्धारित हुआ है। पुष्कर का अर्थ एक ऐसे सरोवर से है, जिसकी रचना एक पुष्प से हुई थी।
सभी पवित्र तीर्थ स्थलों में जहां दीपावली पर्व की अमावस्या को यमराज की प्रसन्नता के लिए दीपदान किए जाते हैं, वहां “णुका तीर्थ, गढ़गंगा, हरिद्वार, प्रयाग, काशी व पटना आदि में लोकाचार के अनुसार स्नान होते हैं। मान्यता है कि वैशाख स्नान ओर माघ स्नान से निवृत हो जाएं, तो कार्तिक स्नान किए बिना उनका पुण्य नहीं मिलता हे। स्नान करने का अभिप्राय यही हे कि जब माघ स्नान, वेशाख स्नान और कार्तिक स्नान पूर्ण हो जाएं, तभी जाकर चार धाम का पुण्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
प्रिय पाठकों! वैदिक यम नियम के अधीन हिन्दू जगत के 16 संस्कार और 10 कमों में एक कर्म स्नान भी है। प्रत्येक वर्ष वैशाख, कार्तिक और माघ मास में पूर्णमाओं के मध्य पड़ने वाले पक्षों में पवित्र स्नान आयोजित होते हैं। धर्म की आधारशीला में व्रत उपवास और तिथि पर्व पर पवित्र नदियों का स्नान महत्वपूर्ण है। |
गंगा, यु ना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु और कावेरी-ये सात नदियां ऐसी हें, जिनमें प्रतिवर्ष स्नानों के मध्य यात्रा करके अवश्य ही स्नान ओर दान का पुण्य अर्जित करना चाहिए। क्योंकि, इन्हीं नदियों का जल सबसे पवित्र है। इन सबमें माघ स्नान भगवना शिव के लिए, वैशाख स्नान भगवान विष्णु के लिए और कार्तिक स्नान भगवान ब्रह्मा के लिए होता है। यह भी परंपरा है कि त्रिदेव के निमित्त किए जाने वाले स्नान पर्व के मध्य स्नान करने से मनुष्य के पाप तो दूर होंगे ही, साथ ही साथ जन्मों के किया गये पाप भी धल जाते हें।