मेरे राज्य में न चोर हैं न कृपण हैं, न शराबी हैं न व्यभिचारी हैं |
एक बार उपमन्यु के पुत्र प्राचीनशाल, पुलुष-पुत्र सत्ययज्ञ, भल्लवि-पौत्र इन्द्रध्रुम, शर्कराक्षका पुत्र जन और अश्वतराश्व-पुत्र बुडिल-ये महागृहस्थ और श्रोत्रिय एकत्र होकर आपस में आत्मा और ब्रद्म के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करने लगे। पर जब वे किसी ठीक निर्णय पर न पहुँचे, तब अरुण के पुत्र उद्दयालक के पास जाकर इस रहस्य को समझने का निश्चय किया।
दूसरे दिन पूर्वाह्म में वे हाथ में समिधा लेकर राजा के पास गये और राजा ने उन्हें बतलाया कि यह समस्त विश्व भगवत्स्वरूप है तथा आत्मा एवं परब्रह्म में स्वरूपत: कोई भेद नहीं है।