वह तुम ही हो
अरुण के पुत्र उद्दलक का एक लड़का श्वेतकेतु था। उससे एक दिन पिता ने कहां, श्वेतकेतु ! तू गुरुकुल मैं जाकर ब्रह्मचर्य का पालन कर क्योंकि हमारे कुल में कोई भी पुरुष स्वाध्याय रहित ब्रह्मबन्धु नहीं हुआ।
तदनन्तर श्वेतकेतु गुरुकुल में गया और वहाँ उपनयन कराकर बारह वर्ष तक विद्याध्ययन करता रहा। जब वह अध्ययन समाप्त करके घर लौटा, तब उसे अपनी विद्या का बड़ा अहंकार हो गया। पिता ने उसकी यह दशा देखकर उससे पूछा – सौम्य ! तुम्हें जो अपने पाण्डित्य का इतना अभिमान हो रहा है, सो क्या तुम्हें उस एक वस्तु का ज्ञान है, जिसके जान लेने पर सारी वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है, जिस एक के सुन लेने से सारी सुनने योग्य वस्तुओं का श्रवण तथा जिसे विचार लेने पर सभी विचारणीय वस्तुओं का विचार हो जाता है?’
श्वेतकेतु ने कहा – मैं तो ऐसी किसी भी वस्तु का ज्ञान नहीं रखता। ऐसा ज्ञान हो भी कैसे सकता है ?’ पिता ने कहा – जिस प्रकार एक मृत्तिका के जान लेने पर घट, शरावादि सम्पूर्ण मिट्टी के पदार्थो का ज्ञान हो जाता है। अथवा जिस प्रकार एक सुवर्ण कों जान लेने पर सम्पूर्ण कड़े, मुकुट, कुण्डल एवं पात्रादि सभी सुवर्ण के पदार्थ जान लिये जाते हैं। अथवा एक लोहे के नखछेदनी से सम्पूर्ण लोहै के पदार्थो का ज्ञाग हो जाता है कि तत्व तो केवल लोहा है। टांकी, को कुदाल, नखछेदनी, तलवार आदि तो वाणी के विकार हैं।’
इस पर श्वेतकेतु ने कहा – पिताजी | पूज्य गुरुदेव ने मुझे इस प्रकार की कोई शिक्षा नहीं दी। अब आप ही मुझे उस तत्त्व का उपदेश करें, सचमुच मेरा ज्ञान अत्यन्त अल्प तथा नगण्य है।’ इस पर पिता ने कहा-‘आरम्भ में यह एकमात्र अद्वितीय सत् था। उसने विचार किया कि मैं बहुत हो जाऊँ। उसने तेज (अग्नि) उत्पन्न किया। तेज से जल, जल से अन्न और पुनः सब अन्य पदार्थ उत्पन्न किये। कहीं भी जो लाल रंग की वस्तु है वह अग्रि का अंश है, शुक्ल वस्तु जल का अंश है तथा कृष्ण वस्तु अन्न का अंश है। अतएवं इस विश्व में अग्नि, जल और अन्न ही तत्त्व हैं। इन तीनों के ज्ञान से विश्व की सारी वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है। अथवा इन सभी के भी मूल “सत्तत्त्व” के जान लेने पर पुनः कुछ भी ज्ञेय अवशिष्ट नहीं रह जाता।’
श्वेतकेतु के आग्रह पर आरुणि ने पुनः इस तत्त्व का दही, मधु, नदी एवं वृक्षादि के उदाहरण से बोध कराया और बतलाया कि सत से उत्पन्न होने के कारण ये सब सत् आत्मा ही हैं और वह आत्मा तुम ही हो। इस प्रकार श्वेतकेतु ने सच्चा ज्ञान पाया कि एक परमात्मा के जान लेने, चिन्तन करने, आराधन-पूजन करने से सब की जानकारी, आराधना हो जाती है।