सूर्य षष्ठी की कहानी
प्राचीन काल में विन्दुसार तीर्थ में एक महीपाल नामक वणिक रहता था। वह धर्म-कर्म तथा देवता विरोधी था। एक बार उसने सूर्य भगवान की प्रतिमा के सामने मल मूत्र का त्याग किया। परिणामस्वरूप उसकी आंखों की ज्योति जाती रही। इसके बाद वह अपने जीवन से ऊबकर गंगाजी में डूबकर मर जाने को चल दिया। रास्ते में उसकी भेंट महर्षि नारदजी से हो गई।
नारद जी उससे पूछने लगे-महाश्य!जल्दी जल्दी किधर जा रहे हो? महीपाल रोते रोत बोला-मेरा जीवन दूभर हो गया है। मैं अपनी जान देने हेतु गंगा में कूदने जा रहा हूं। मुनि बोले-मूर्ख प्राणी! तेरी यह दशा भगवान सूर्य देव के कारण हुई है। इसलिए कार्तिक मास की सूर्यषष्ठी का .ब्रत रख। तेरे सब कष्ट दूर हो जायेंगे। वणिक ने ऐसा ही किया तथा सुख समृद्धिपूर्ण दिव्य ज्योति प्राप्त कर स्वर्ग का अधिकारी बन गया।