नरसिंह जयन्ती की कथा
राजा कश्यप के यहां दो पुत्र जन्में एक का नाम हिरण्याक्ष और दूसरे का हिरण्यकशिपु रखा गया। राजा के मरणोपरान्त बड़ा पुत्र हिरण्याक्ष राजा बना। परन्तु हिरण्याक्ष बड़ा ही क्रूर स्वभाव का था। वाराह भगवान ने उसे मौत के घाट उतार दिया। इसी का बदला लेने के लिये उसके भाई हिरण्यकशिपु ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिये कठोर तपस्या की और भगवान शिव से वर माँगा-”में न अन्दर मरूँ न बाहर, न दिन में मरूँ न रात में। न भूमि पर मरूँ न आकाश में, न जल में मरूँ न थल में। न अस्त्र से मरूँ न शस्त्र से, न मनुष्य के हाथों मरूँ न पशु द्वारा मरू। भगवान शिव “तथास्तु’ कहकर अन्तर्धान हो गये।