अक्षय तृतीया या आखातीज
अक्षय तृतीया को आखातीज के नाम से भी जाना जाता हे। आखातीज का ब्रत वैशाख माह में सुदी तीज को किया जाता है। इस दिन श्री लक्ष्मी जी सहित भगवान नारायण की पूजा की जाती है। पहले भगवान नारायण और लक्ष्मी जी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराना चाहिए। उन्हें पुष्प ओर पुष्प माल्यार्पण करना चाहिए। भगवान की धूप, दीप से आरती उतारकर चंदन लगाना चाहिए। मिश्री और भीगे हुए चनों का भोग लगाना चाहिए। भगवान को तुलसी दल और नैवेद्य अर्पित कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर श्रद्धानुसार दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। इस दिन सभी को भगवत् भजन करते हुए सद्चिंतन करना चाहिए।
अक्षय तृतीया के दिन किया गया कोई भी कार्य बेकार नहीं जाता इसलिये इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। अक्षय तृतीया का व्रत भगवान लक्ष्मीनारायण को प्रसन्नता प्रदान करता है। वृंदावन में केवल आज के ही दिन बिहारीजी के पांव के दर्शन होते हैं। किसी भी शुभ कार्य को करने के लिये यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता हे। इस दिन प्रातःकाल में मूंग और चावल की खिचड़ी बिना नमक डाले बनाए जाने को बड़ा ही शुभ माना जाता हे। इस दिन पापड़ नहीं सेंका जाता और न ही पक्की रसोई बनाई जाती है। इस दिन नया घडा, पंखा, चावल, चीनी, घी, नमक, दाल, इमली, रुपया, इत्यादि को श्रद्धापूर्वक ब्राह्मण को दान देते हें।