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बिन्दायक जी की कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

बिन्दायक जी की कथा

प्राचीन समय की बात है कि एक बुढ़िया रोज मिट॒टी के गणेशजी बनाकर रोज पूजा करती थी। बेचारी बुढ़िया माई के द्वारा बनाये गणेश जी रोज गल जाते थे ओर वह रोज बनाती थी। उसके घर के सामने एक सेठ का मकान बन रहा था वह बुढ़िया वहां पर गई ओर बोली-राजगीर भाई मेरे मिट॒टी के बनाये गणेशजी रोज गल जाते हैं इसलिये तुम मेरे पत्थर के गणेश जी बना दो। गणेश जी की आप पर बडी कृपा होगी। 
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राजगीर बोला-बुढिया माई जितनी देर तुम्हारे पत्थर के गणेश जी बनाने में लगेगी, उतनी देर में तो हम सेठ जी की एक दीवार बना लेंग। बुढ़िया यह सुनकर बहुत ही दुखी मन के साथ अपने घर वापिस आ गयी। राजगीर जो दीवार बना रहे थे, उस दीवार में उन्हें पूरा दिन बीत गया। जब भी दीवार बनाने की शुरूआत करते वह पहले ही टेढ़ी हो जाती

शाम को सेठ जी आये और पूछा कि आज कुछ काम नहीं किया। तब राजगीर ने बुढ़िया वाली बात बताई। इस पर सेठ जी ने बुढ़िया माई से जाकर क्षमा मांगते हुए कहा-बुढ़िया माई तुम हमारी दीवार सीधी कर दो हम तुम्हें सोने के गणेश जी बनवा देंगे। गणेशजी ने यह सुनते ही सेठजी की दीवार सीधी कर दी। सेठजी ने बुढ़िया माई को पूजा के लिये सोने के गणेशजी बनवाकर दिये। गणेशजी को पाकर बुढ़िया माई बहुत ही खुश हुई हे बिन्दायक जी! जैसे सेठ जी की दीवार सीधी करी वैसे ही सभी जन पर कृपा करना कहने वालों का भी ओर सुनने वालों का भी भला करना।  
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