Home Hindu Fastivals आशा भोगती की कहानी – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

आशा भोगती की कहानी – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

9 second read
0
0
111

आशा भोगती की कहानी 

प्राचीन समय में हिमाचल में एक राजा रहता था जिसके यहां दो पुत्रियां थीं। एक का नाम गौरा था। ओर दूसरी का पार्वती। एक दिन राजा ने अपनी दोनों लड़कियों को बुलाकर पूछा कि तुम किसके भाग का खाती हो। तब पार्वती जी बोलीं कि मैं तो अपने भाग का खाती हूँ, ओर गौरा बोली कि मैं तुम्हारे भाग का खाती हूँ। राजा ने ब्राह्मण को बुलाकर कहा कि पार्वती के लिए भिखारी वर दूँढना ओर गौरा के लिये राजा वर ढूँढना। जब ब्राह्मण ने गौरा को सुंदर राजकुमार को दे दिया और पार्वती जी को बूढ़े भिखारी को दे दिया। भिखारी का रूप धारण करके शिवजी बेठे थे। राजा ने पार्वती जी की शादी के लिये कुछ भी तैयारी नहीं की और गौरा के लिये बहुत-सी विवाह की तैयारी की। जब गौरा की बारात आई तो बारात की बहुत खातिर की गई ओर बड़े ही धूमधाम से शादी सम्पन्न की। परन्तु जब पार्वती जी की बारात आई तो कुछ भी नहीं दिया और कन्यादान कर दिया। शिवजी पार्वती जी को कैलाश पर्वत पर लेकर पार्वती जी जाने लगीं तो जहां पर पाँव रखतीं वहीं से दूब जल जाती। शिवजी ने पण्डितों को बुलाकर पूछा कि क्या दोष है। कि जहां भी पार्वती जी पावं रखती हैं वहीं से दूब जल जाती है। इस पर पण्डित बोले कि पार्वती जी की भाभियाँ आशा भोगती का ब्रत करती थीं उन्होंने अपने पीहर में जाकर उद्यापन कर दिया। ये भी अपने पीहर जाकर उद्यापन करेंगी तब इनका दोष मिटेगा। शिवजी बोले-हम वहां धूमधाम से चलकर ब्रत का उद्यापन करेंगे। नहीं तो उनको कैसे पता चलेगा कि पार्वती जी इतनी सुखी हैं। वह वहां से खूब गहने-कपडे पहनकर चले गये। रास्ते में एक राजा की रानी को बच्चा होने वाला था। वह बहुत परेशान थी ओर भीड़ भी इकट्‌टी हो रही थी। पार्वती जी ने पूछा-इतनी भीड़ क्‍यों हो रही है? लोगों ने उन्हें सब बात बता दी। तब पार्वती जी शिवजी से बोलीं कि मेरी तो कोख बांध दो। शिवजी ने बहुत मना किया परन्तु उन्होंने जिद पकड़ ली। शिवजी बोले कि औरत की हठ बहुत खराब होती है। शिवजी ने उनकी कोख बांध दी। गौरा अपनी ससुराल में बहुत दुखी थी। पार्वती जी जब अपने पीहर आई। तब उन्हें कोई पहचान ही नहीं पाया। जब पार्वती जी ने अपना नाम बताया तब सभी लोग काफी प्रसन्‍न हुए। उसके पिता ने पूछा तू किसके भाग का खाती हे? तब फिर पावती जी बोलीं में अपने भाग का खाती हूं, तभी तो इतनी खुश हूं। वहां उसकी भाभियाँ आशा भोगती का उद्यापन कर रहीं थीं। तब पार्वती जी बोलीं कि मेरे उद्यापन की तैयारी नहीं है। नहीं तो में भी उद्यापन कर देती! इस पर भाभियों ने कहा-तुम्हारे पास किस चीज की कमी है। शिवजी तो अपने आप ही सारी तैयारी कर देंगे। दासी से बोली कि शिवजी कुंए के पास बेठे हैं, उनको कह कि वे पार्वती जी के आशा भोगती के ब्रत के उद्यापन की तैयारी कर दें और दासी ने शिवजी से ऐसा ही कहा। शिवजी ने दासी को अंगूठी दी और कहा कि इससे जो मांगोगे मिल जायेगा। दासी ने अंगूठी ले जाकर  पार्वती जी को शिवजी का संदेश सुना दिया। पार्वती जी ने ठीक प्रकार से तैयारी कर ली। 8 सुहाग पिटारी मंगवाई, 8 तिल, 8 गहने, 8 पोली, 8 नथ, सुहाली, चूडा, नाल, डाली, रोली, मेहंदी, सिन्दूर, काजल, टीका, शीशा और सुहाग की सभी चीजें डाल दीं। एक सुहाग पिटारी सासूजी को देने के लिये अलग से तैयार कर ली। यह देखकर भाभियां बोली हम तो 8 महीने से तैयारी कर रहे हैं तब भी इतनी तैयारी नहीं हुई और इसने थोड़ी-सी देर में ही ढेर सारी तैयारी कर ली। शिवजी ने पार्वतीजी से कहा-” अब घर चलो।” तब ससुर ने शिवजी को जीमने के लिये बुलाया तो शिवजी खूब गहने पहनकर और छोटा-सा रूप बनाकर बड़ी धूमधाम से जीमने गये।
 जब लोग बोले कि पार्वतीजी को भिखारी दूंढकर दिया परन्तु पार्वती अपने भाग से खूब राज कर रही है। शिवजी जीमने लगे तो सारा खाना ख़त्म कर दिया। पार्वती जी जीमने लगीं तो कुछ भी नहीं बचा था। सिर्फ एक सब्जी उबली हुई पड़ी थी तो पार्वती जी वही साग खाकर ठण्डा पानी पीकर वहां से चलने लगीं। रास्ते में खूब गर्मी थी और वह एक पेड़ के नीचे बेठ गई। तब शिवजी ने पूछा कि तुम क्‍या खाकर आई हो, तब पार्वती जी बोलीं-”जो तुमने खाया वही मैंने खाया।”परन्तु शिवजी सब जानते थे । शिवजी हँसने लगे और बोले-”तुम तो सब्जी और पानी पीकर आई हो।”
पार्वती जी बोलीं कि आपने तो मेरा परदा खोल दिया लेकिन किसी और का परदा मत खोलना। बाद में आगे गये तो जो दूब सूख गई थी वह हरी हो गई। शिवजी ने सोचा कि दोष तो मिट गये। पार्वतीजी बोलीं कि महाराज अब मेरी कोख खोल दो। शिवजी बोले अब कैसे खोलू। मैंने तो पहले ही मना कर दिया था। वहाँ से आगे गये तो वही रानी कुंआ पूजने जा रही थी। पार्वती जी ने पूछा कि महाराज यह क्‍या हो रहा है? इस पर शिवजी बोले-कि यह वही रानी है जो दुःख पा रही थी। अब इसके लड़का हो गया, इसीलिये कुंआ पूजने जा रही है। पार्वतीजी बोलीं-”महाराज! मेरी तो कोख खोलो।” तब शिवजी बोले-“मेंने तो तुमसे पहले ही मना किया था कि कोख मत बंधवाओ लेकिन तुमने जिद कर ली थी।” तब जादू से सारी चीजें निकालकर गणेशजी बनाये तो पार्वतीजी ने बहुत सारे नेगचार किये और कुंआ पूजा किया। पार्वतीजी बोलीं कि मैं तो सुहाग बाटूंगी तो सारे देश में शोर मचा कि पार्वतीजी सुहाग बांट रहीं हैं जिसको लेना हो ले ले। साधारण मनुष्य तो दोड़कर सुहाग ले गये परन्तु ब्राह्मणी और वेश्य स्त्रियाँ सुहाग लेने देर से पहुंची। तब पार्वती जी बोलीं कि मैंने तो सारा सुहाग बांट दिया। शिवजी बोले कि इनको तो सुहाग देना पड़ेगा। पार्वती जी ने नखूनों में से मेहंदी निकाली, मांग में से सिन्दूर, बिन्दी में से रोली, आंखों में से काजल और चितली अंगुली का छींटा दे दिया ओर उन्हें सुहाग मिल गया व सारी नगरी में जय-जयकार हो उठी। कि पार्वतीजी ने सबको सुहाग दिया है। इस ब्रत व उद्यापन को कुंवारी लड़कियां ही करती हें। इसके बाद बिन्दायक जी की कहानी कही।
Load More Related Articles
Load More By amitgupta
Load More In Hindu Fastivals

Leave a Reply

Check Also

What is Account Master & How to Create Modify and Delete

What is Account Master & How to Create Modify and Delete Administration > Masters &…