इन्दिरा एकादशी
इस एकादशी का व्रत करने से उद्योगपति को प्राप्त पितृगण शुभ गति को प्राप्त करते हैं, यानी पितरों का उद्घार होता है। इन्दिरा एकादशी आश्विन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनायी जाती है। इस दिन शालिग्राम की पुजा करके व्रत रखा जाता है।
पवित्र होकर शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर वस्त्र पहनाये” जाते हैं तथा भोग लगाकर आरती उतारी जाती है। पंचामृत वितरण कम्के शालिग्राम पर तुलसी अवश्य चढानी चाहिए। इस ब्रत की कथा को मुनने से सब पापों से छुटकारा मिल जाता हे।
इन्दिरा एकादशी की कथा
सत्युग में महिष्मतीपुरी में इंद्रसेन नामक एक प्रबल प्रतापी राजा राज कर्ता था। वह पुत्र, पोत्र, धन््य-धान्य’ से संपन्न था और भगवान विष्णु का परम भक्त था। उसके माता पिता स्वर्गवासी हो चुके थे। अचानक एक दिन उन्हें स्वप्न आया कि तुम्हारे माता-पिता यमलोक में कष्ट भोग रहे हैं। नींद टूटने पर वे बहुत ही चिन्तित हुए कि किस प्रकार इस यातना से पितरों को मुक्त किया जाये। इस विषय पर मंत्री से परामर्श किया।
मंत्री ने राजा को परामर्श दिया कि वे विद्वानों को बुलाकर इस विषय पर वार्तालाप करें। राजा ने ऐसा ही किया। सभी ब्राह्मणों के उपस्थित होने पर स्वप्न की बात पेश की गई। ब्राह्मणों ने. कहा-”राजन्! यदि आप सकुट॒म्ब इन्दिरा एकादशी ब्रत करें तो आपके पितरों की मुक्ति हो जायेगी। उस दिन आप शालिग्राम की पूजा, तुलसी आदि चढ़ाकर 11 ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर आर्शावाद प्राप्त करें। इससे आपके माता-पिता स्वयं ही स्वर्ग में चले जायेंगे। आप रात्रि को मूर्ति के पास ही शयन करना। राजा ने ऐसा ही किया। जब राजा मन्दिर में सो रहा था तभी भगवान के दर्शन हुए और उन्होंने कहा कि हे राजन! ब्रत के प्रभाव से तेरे माता-पिता स्वर्ग को पहुंच गये। राजा इंद्रसेन भी इस ब्रत के प्रभाव से इस लोक में सुख भोगकर अंत में स्वर्ग को गया।