पितृ-विसर्जनज अमावस्या
इस दिन शाम को दीपक जलाने के बाद पूढ़ी-पकवान आदि खाद्य पदार्थ दरवाजे पर रखे जाते हैं। जिसका अर्थ यह है कि पितृ जाते समय भूखे न रह जायें। इसी तरह दीपक जलाने का आशय उनके मार्ग को प्रकाशमय करने का है। आश्विन अमावस्या पितृ-विसर्जन अमावस्या के नाम से जानी जाती है। इस दिन ब्राह्मण भोजन तथा दानादि से पितर तृप्त हो जाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि विसर्जन के समय वे अपने पुत्रों को आशीर्वाद देकर जाते हैं इस दिन सवा किलो जो के आटे के सोलह पिण्ड बनाकर, आठ गाय को, चार कुत्ते को एवं कोओं को खिलाना चाहिए एवं उस दिन पितृ स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।
इस दिन शाम को दीपक जलाने के बाद पूढ़ी-पकवान आदि खाद्य पदार्थ दरवाजे पर रखे जाते हैं। जिसका अर्थ यह है कि पितृ जाते समय भूखे न रह जायें। इसी तरह दीपक जलाने का आशय उनके मार्ग को प्रकाशमय करने का है। आश्विन अमावस्या पितृ-विसर्जन अमावस्या के नाम से जानी जाती है। इस दिन ब्राह्मण भोजन तथा दानादि से पितर तृप्त हो जाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि विसर्जन के समय वे अपने पुत्रों को आशीर्वाद देकर जाते हैं इस दिन सवा किलो जो के आटे के सोलह पिण्ड बनाकर, आठ गाय को, चार कुत्ते को एवं कोओं को खिलाना चाहिए एवं उस दिन पितृ स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।