मिथ्याभिमान
भरत खिन्न हो गये। उनका अभिमान कितना मिथ्या था। उन्होंने विवश होकर वहाँ एक नाम मिटवा दिया और उस स्थान पर अपना नाम अंकित कराया। किंतु लौटने पर राजपुरोहित ने कहा-राजन्! नाम को अमर रखने का आधार ही आपने नष्ट कर दिया। अब तो आपने नाम मिटाकर नाम लिखने की परम्परा प्रारम्भ कर दी। कौन कह सकता है कि वहाँ आपका नाम कौन कब मिट देगा।