Home Hindu Fastivals संकरात के नियम (बयें) – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

संकरात के नियम (बयें) – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

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संकरात के नियम (बयें) 

*पति को छूहारे देना-पति को छूहारे देकर पत्नी कहती है-लो सैया जी छुहारे, सदा रहो हमारे।
*गुड़ की भेली-”गुड़ की भेली देते समय बहू ससुरजी से कहती है-लीजिए पाप भेली, दिखाओ अपनी थैली या हवेली।”
 
* घाट-पाट-सींचने का नियम बड़ी संक्राति से लिया जाता है। यदि रोज सीचना हो तो रोज सींचा जाय अन्यथा महीने में जो एक संक्राति आये, उस दिन 31 जगह पूरे एक माह का सींचकर पूरा कर लिया जाता है। अपने घर के आगे थोडा सा गोबर रखकर उस पर जल के छींटे देकर पर रोली की सात बिन्दी लगाकर चावल चढ़ाये जाते हैं जल गोबर की ढेरी के आगे सींचा जाता है। इस प्रकार बारह माह तक की जाती है। इसके बाद दूसरी संक्रांति के अवसर पर एक साडी या ओढना तथा एक चांदी के गिलास में मेवा भरकर तथा उस पर एक रूपया रखकर, हाथ से स्पर्श करके (हाथ फेरकर) अपनी सास को चरण स्पर्श करके देते हैं। 
* मेवा मठरी-”फल, मेवा, मठरी देते समय बहू सासू जी से कहती है लीजिए मां जी मठरी, खोलिए अपनी गठरी।”
* पति को पान खिलाना-पति को पान खिला कर पत्नी कहती है ‘लो सैयां जी पान, रखो सदा हमारा मान।’! 
 * देवर को बादाम-छलनी में बादाम देकर भाभी देवर से कहती है-”लो देवर जी बादाम, बनिये हमारे गुलाम।” 
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* ननद को मनाना-छोटी ननद के कपडे बनवाकर, पताशे देकर भाभी कहती है-”लो ननदिया पताशे, दिखाओ अपने तमाशे।”! 
* चिड़िया मुटठी-देने का नियम बड़ी संक्राति से ही लिया जाता है। 12 माह तक एक एक मुट्ठी चावलों को महीने में आने वाली संक्राति को चिडियों को देते हैं। बारह माह पूरे होने पर बड़ी (मकर) संक्राति के दिन उद्यापन करके एक चांदी की चिडिया, चावल तथा रूपये इन पर हाथ फेर कर अपनी सास के चरण स्पर्श करके उन्हें देते हैं। 
*कोठी मुटठी-का नियम भी बड़ी मकर संक्राति से ही लिया जाता है। एक बर्तन में चावल भर लिए जाते हैं। बर्तन से प्रति दिन मुट्ठी भरकर चावल थालों में भर लिए जाते हैं, इसके बाद इन थालों के चावलों को प्रतिदिन अथवा 31 थाली चावलों को माह की संक्राति तिथि के दिन ब्रह्मणों को दान देते हैं। इसके बाद मकर संक्राति के दिन विधि बत्‌ उद्यापन किया जाता है। उद्यापन के दिन एक बड़े बर्तन में चावल और रूपये रखकर हाथ से स्पर्श करके अपनी सास के चरण स्पर्श करके दिये जाते हैं। 
* भगवान्‌ के पट खुलवाना-किसी भी मंदिर में भगवान के लिए एक पर्दा भिजवा दिया जाता है। तत्पश्चात मन्दिर के पुजारी से पर्दा हटवां कर एक थाली में मिठाई व रूपए रखकर भगवान की प्रतिमा को प्रणाम कर भगवान को समपित कर दी जाती है। 
० सोते हुए ससुर को जगाना-संक्राति के दिन लड़की के पीहर वाले लड़की की ससुराल में सोने के निमित्त पूरा बिस्तर (गद्दा, तकिया, रजाई, चादर) भेज देते हैं। इस बिस्तर पर ससुरजी सो जाते हैं। इसके बाद बहु अपने ससुर को उनके पलंग के चारों तरफ नारियल बजा कर जगाती है । जब ससुरजी उठकर बैठ जाते हैं। तो उनके आगे रूपये तथा लड्डू रख दिए हैं। इसके साथ ही अपनी सास के भी चरण स्पर्श कर उनको भी रूपये देते हैं। इसके बाद ससुरजी भी अपनी बहुओं को रूपये देते हैं। यदि लड़की के मायके से स्त्रियां भी आती हैं तो उन्हें आहिए कि थे अपने साथ ही रूपये तथा लड॒डू लेकर आएं तथा दामाद का तिलक कर उसे भी रूपये दे दें। इस अवसर पर लड़की की सास का भी रुपये दिए जाते हैं। 
* थाल परोसना-ताऊ ससुर, चाचा ससुर, मामा ससुर, दरिया ससुर, ससुरजी, जेठनी, इत्यादि में से किसी के आगे अथदा सम्भव हा तो सभी के आगे बहू एक थाल में रुपये रखकर मिठाइयाँ परोम्कर रख देती है इसके बाद सभी लोग बहू के लिए जितने चाहें उतने रुपए देते हैं 
* सासूजी को कपड़े (तीयल ) पहनायें-मकर सक्राति के दिन बहुएं सासूजी को कपडे (साडी, ब्लाउज इत्यादि)पहनाकर अपनी सासू के चरण स्पर्श करके रुपए देती हैं। 
० रूठी हुई सासूजी को मनाएं-संक्राति के दिन सामूजी गुस्सा होकर अपने कमरे को छोड़कर किसी दूसरे कमरे में बैठ जाती हैं इस पर बहू रूठी हुई सासूजी को मनाकर उन्हें कपड़े पहनाकर रूपये देती है तथा चरण स्पर्श करती है। और सासूजी से निवेदन करती है कि वे अपने कमरे में चले। इस पर सासूजी अपने कमरों में आकर और प्रसन्‍न होकर अपनी बहू को आशीष देती हें। 
० सासूजी को सीढ़ी चढ़ाएं-मकर संक्राति के दिन बहू अपनी सासू को सीढ़ी चढ़ाती हैं। पहली सीढ़ी पर गिन्‍नी या जो श्रद्धा हो वह रखती जाए। इसके बाद प्रत्येक सीढ़ी पर श्रद्धानुसार रुपया रखती हे ओर सासूजी उन रुपयों को उठाती हुई सीढ़ी चढ़ती जाती हैं। इसके बाद अन्तिम सीढ़ी पर गिन्‍नी अथवा उतने ही रुपये रखे जितने पहली सीढ़ी चढाते समय रखे थे। इसके बाद सासूजी को नीचे उतारें। जितने सासूजी को सीढ़ी चढाते समय रखे थे उतरते उसके आधे रुपए सीढ़ियों पर रखती जाए। चढ़ते उतरते समय के सारे रुपये सासूजी ले कर अपने पास रखलें। इस का को इस प्रकार से पूरा करने के बाद बहू सासूजी के चरण स्पर्श करती है।  
* देवर के लिए घेवर देवरानी के लिए चूड़ी देना-घेवर पर रुपया रख कर अपने देवर को देते हैं तथा देवरानी के लिए एक साड़ी और सोने की या कांच की चूड़ी देकर उसे अशीष देते हें। 
*आवल चावल खूंटीचीर-रसोई में चावल बनाकर अपनी ननदों को भोजन करवाते हैं इसके बाद एक खूंटी पर साड़ी और चूड़ी टांग देते हैं। जितनी ननदें हों, उनसे भाभी कहे-”आवल चावल खूंटीचीर दिखाओ  इस पर ननद खूंटी पर अपने वस्त्र भाई भाभी को दिखा कर खूंटी से ले लेती हैं। इसके बाद भाभी ननदों के चरण स्पर्श कर उनको रुपए देती हैं। 
* ननदोई का झोला भरें-ननदोई के घर जाकर गीत गाते हैं तथा ननदोई को कपडे (कमीज, बनयिन, पैन्ट, रूमाल, दुपट्टा इत्यादि)देते हैं। ननदोई को दुपट्टा उढाकर उसमें मेवा मिठाई और रुपए रखकर तथा तिलक करके नारियल देते हैं। इसके बाद एक थाल में मेवा मिठाई रखकर ननदोई के आगे रख देते हैं। 
* जेठ को जलेबी देना-चार जलेबियों पर चांदी की कटोरी में दही रख कर उसमें रुपए या गिन्‍नी रखकर जेठ को देते हैं इसके अलावा चार जलेबी तथा दही रखकर जेठजी के बच्चों के लिए भी देते हैं। 
* छींके भोजन-एक छीके पर मेवा मिठाई तथा रुपए रख देते हैं फिर छीके से ससुर या जेठ सामान लेकर तथा बहू को रूपए देकर आशीष भी देते हैं। 
* जेब भरे-बहू जेठ की लड़की, कुआंरी ननद, देवर अथवा भानजी की जेब में मेवा ओर रुपए भरती हे। ननद तथा जेठजी की लड़की यदि छोटी हो तो उसे फ्राक देती है, यदि बड़ी हो तो उसे नयी अच्छी साड़ी देती है। देवर की जेब में सब प्रकार की सेवा भरकर तथा उसे अपनी शक्ति के अनुसार पहनने के लिए नवीन वस्त्र (कोट, कमीज तथा अन्य वस्त्र) प्रदान करती हे। । 
* जलेबी व पान का नेग-एक नारियल में गिन्‍नी अथवा रुपए भरकर अपने पति को देती हैं। उस नारियल के ऊपर चार जलेबियां, पान तथा रुपए भी रखकर देती हैं। पति के चरण भी स्पर्श करती हैं। 
* पति को मलाई खिलाये-एक चांदी की कटोरी में मलाई अथवा रबड़ी भरकर अपने पति को खिलाती हैं। इसके बाद उन्हें दुशाला अथवा पांच वस्त्र (कोट, कमीज, पैन्ट, रुमाल, बनियान इत्यादि) दे कर उनके चरण स्पर्श करती हैं। 
 * पति के पैर धोएँ-एक चांदी के बर्तन में पति के पैर धोती हें। पैर धोने के पश्चात्‌ उन्हें मोजे तथा जूते पहना देती हैं। फिर उनके चरण स्पर्श कर रुपए भी देती हैं। 
* सास की पीठ मलें-सासूजी की पीठ मलकर उन्हें ब्लाऊज तथा साड़ी देती है। उनके आगे मेवा मिठाई तथा रुपए रखकर उनके चरण स्पर्श करती हैं। 
* दोघड़ लाना-जिसके फु उत्पन्न हो वह संक्राति के दिन अपनी मां के यहां से दो घड़े लाती हैं। एक मिट॒टी के घड़े में पानी भरकर इसके बाद उसके ऊपर एक चांदी के लोटे में जल भरकर रखती हैं तथा लोटे में एक रुपया डाल देती हैं। इसके बाद घड़े पर रोली से सतिया बनाकर पूजन करती हैं। घड़े को किसी सेवक अथवा ब्राह्मणी के कन्धे पर रखघाकर ससुराल के लिए जाती हैं। रास्ते में मेवा और रुपये पैसे डालते हैं। साथ में एक चांदी की घण्टी लेकर बजाते हैं। पीछे पीछे मायके की स्त्रियां भी गीत गाती जाती हैं समुराल पहुंच कर घड़ा एक स्थान पर रखवाकर घड़ा लाने वाले को रुपए देकर विदा करते हैं। यदि लड़की के साथ उसकी मां भी जाये तो वह समुराल पहुंचकर दामाद का तिलक करके उसे रुपए तथा नारियल देती हैं। 
* दूध पिलाना-अपने ससुर अथवा जेठजी को चांदी के गिलाम में दूध पिलाती हैं तथा उनके सामने एक थाली में मेवा, मिठाई व रूपये भी रखती हें। दूध पिलाने के बाद वह गिलास भी उन्हीं को दे दिया जाता है। ससुर व जेठजी बहू को नेग के रूपये देते हैं। 
० धोती निचोड़ना-इस दिन अपने ससुर अथवा जेठ जी की भीगी हुई धोती निचोड़ती हैं तथा सूखने को फैला देती हैं। फिर एक थाली में मिठाई व धोती रखकर उन्हें देती हैं बाद में बहू को नेग देते हैं। 
० गेहूं, साड़ी, रुपया इत्यादि पर हाथ फेरकर ब्राह्मणी को दिए जाते हैं। एक साल तक 360 प्रकार की खाने ओर पीने की चीजें मन्दिरों में या भानजी, ननद आदि को 1.25 सेर के हिसाब से देते हैं। 
० ब्रद्माणी के सिर में तेल डालकर उसे तेल की शीशी, कंघी, शीशा, सिन्दूर तथा मांग का टीका भी दे सकते हैं। ब्राह्मणी के हाथों में मेंहदी रचाकर उसे अंगूठी दे सकती हें। ब्राह्मणी के पैर धोकर उसे पाजेब व बिछवे (चुटकी)पहना सकती है। ब्राह्मणी को नहलाकर उसे लोटा बाल्टी तथा साड़ी, ब्लाऊज, पेटीकोट, रूमाल, तोलिया देती हैं। फिर पैर छूकर दक्षिणा भी देती हेैं। 
० चोदह (14) जगह में पुरुषों, महिलाओं तथा बच्चों के भी कपड़े रख कर तथा सुहाग की वस्तुएं, आभूषण, गीता का पुस्तक, तुलसी की माला व दक्षिणा, रखकर इन्हें चोदह ब्राह्मणो को देकर प्रणाम करना चाहिए। 
* किसी ब्राह्मणी को संक्रांति के दिन 12 महीने भोजन कराकर अन्तिम संक्राति के दिन साड़ी, ब्लाऊ व दक्षिणा देकर प्रणाम करती है और आदर के साथ विदा करती हैं। 14 बर्तनों मे गेहूं भरकर 14 ब्राह्मणों को दान देकर प्रणाम करती हैं इसी प्रकार ब्राह्मणियों को भी 14 सुहाग पिटारियां तथा दक्षिणा देकर प्रणाम करती हैं। चोदह ब्राह्मणियों को भोजन कराकर, दक्षिणा देकर तथा प्रणाम करके विदा करती हें। 
* सौ सेरी बड़ी संक्राति में प्रत्येक वस्तु एक सेर देने का नियम लेते हैं। यह अपनी इच्छानुसार सौ प्रकार की वस्तुएं एक दो पांच वर्षा तक दे सकती हैं। जेसे दाल, मसाले, फल मिठाई अथवा कोई भी खाने की वस्तुएं दे सकती हैं। 
विशेष: इन नेगों के अतिरिक्त और भी बहुत से नेग हैं और यह सब करने वाले की रुचि, श्रद्धा, तथा अर्थ शक्ति पर निर्भर करता है। लेकिन जो भी नेग किया जाए उससे सम्बन्धित सभी बातों को पूरा किया जाए। 
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