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मोक्षदा एकादशी व्रत की कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

मोक्षदा एकादशी व्रत की कथा

प्राचीन गोकुल नगर में धर्मात्मा और भक्त बैखानस नाम का राजा था। उसने रात्रि को स्वप्न में अपने पूज्य पिता को नकर भोगत हुए देखा। प्रात काल उसने ज्योतिषी वेदपाठी ब्राह्मणों से पूछा कि मेरे पिता का उद्धार कैसा होगा? ब्राह्मण बोले-यहां समीप ही पर्वत ऋषि का आश्रम है। उनकी शरणगति से आपके पिता शीघ्र ही स्वर्ग को चले जायेंगे। राजा पर्वत ऋषि की शरण में गया और दण्डवत करके कहने लगा-मुझे रात्रि को स्वप्न में पिता के दर्शन हुए। वह बेचारे यमदूतों के हाथों से दण्ड पा रहे हैं। अत: आप अपने योगबल से बताइए कि उनकी मुक्ति किस साथन से शीघ्र होगी। मुनि ने विचार कर कहा कि धर्म-कर्म सब देरी से फल देने वाले हैं।
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शीघ्र बरदाता तो केवल शंकरजी प्रसिद्ध हैं परन्तु उनको प्रसन्‍न करना भी कोई आसान नहीं है। देर अवश्य लग जाएगी और तक तक तो राजा हारे पिता को यमदुतों से और कष्ट झेलना पडेंगा। इसलिए सबसे सुगम ओर शीघ्र फलदाता मोक्षदा एकादशी का ब्रत है। उसे विधि पूर्वक परिवार. सहित करके पिता को संकल्प कर दो। निश्चय ही उनकी मुक्ति होगी। राजा ने कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का ब्रत करके फल पिता के अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से वह स्वर्ग को चले गए ओर जाते हुए पुत्र से बोले-मैं परमधाम को जा रहा हूं। श्रद्धा भक्ति से जो मोक्षदा एकादशी का माहात्मय सुनता है उसे दस यज्ञ का फल मिलता हे।
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