ऋषि पंचमी व्रत कथा
राजा सिताश्व ने ब्रह्माजी से पूछा कि सभी पापों को नष्ट करने वाला कौन सा श्रेष्ठ ब्रत है? तब ब्रह्माजी ने ऋषि पंचमी को उत्तम बतलाया और कहा-“’हे राजन् सिताश्व1 विदर्भ देश में एक उत्तंक नाम सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुशीला था। उसके दो सन््तानें थीं-एक पुत्री तथा दूसरा युत्र। कन्या विवाह होने के पश्चात् विधवा हो गई इस दुःख से दु:खित ब्राह्मण दम्पत्ति कन्या सहित ऋषि पंचमी श्रत
रखने लगे जिसके प्रभाव से जन्मों के आवागमन से छुटकारा पाकर स्वर्गलोक के वासी हो गये। सूर्य छठ भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य षष्ठी कहते हैं। इस दिन गंगा स्नान, जप तथा ब्रत करने से अक्षय पुण्य फल प्राप्त होता है। इस दिन सूर्य-पूुजन और गंगा-स्नान का विशेष महत्व है। इस ब्रत की पूजन-सामग्री में कनेर का लाल फूल, गुलाल, दीप तथा लाल बसम्त्र का विधान है। सूर्य भगवान की आराधना करने से नेत्र रोग और कोढ़ दूर हो जाते हैं। इस दिन व्रत करने वाले को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। सूर्य अस्त होने से पहले भोजन कर लेना चाहिए। पलकें बन्द करके मूर्य की ओर देखना नेत्रों के लिए लाभकारी है।