Home Hindu Fastivals रामायण-पाठ – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

रामायण-पाठ – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

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 रामायण-पाठ 

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बालकाण्ड 

मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी। जो अनाथ हित हम पर नेहू, तो प्रसन्‍न होइ यह वर देहू। देखहिं हम सो रूप भरि लोचन, कृपा करहुं प्रनतारित मोचन। बार बार मांगऊँ कर जोरें, मन परिहरै चरन जनि भोरें। 
अयोध्या काण्ड
 सेवक हर स्वामी सिय नाहू, होठ नाथ यह ओर निबाहू। अब करि कृपा देहु वर एहूं, निज पद सरसिज सहज सनेहूं। जोरि पानि वर मांगऊ एहूं, सिया राम पद्‌ सहज सनेहुं। सीता राम चरन रति मोरे, अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे। 

अण्य काण्ड जो कोसलपति राजिवच नयना, करठ सो राम हृदय मम अयना। अस अभिमान जाइ जनि भोरे, में सेवक रघुपति पति मोरे। यह वर मांगऊ निकेता, बसहु हृदय श्री अनुज समेता। 
किष्किन्धा काण्ड 
जदपि नाथ बहु अवगुन मोरे, सेवक प्रभुहि परै जनि भोरे। सेवक सुत पति मातु भरोसे, रहे असोच बने प्रभु पोसे। अब प्रभु कृपा करहु एहि भांति, सब तजि भजनु करौ दिन राति। 
सुन्दर काण्ड 
दीन दयाल विरदु संभारी, हरहु नाथ मम संकट भारी। अब मैं कुशल मिटे भय भारे, देखि राम पद कमल तुम्हारे। तुम्ह कृपाल जापर अनुकूला, ताहि न व्याप विविध भवसूला। लंका काण्ड 
कृपा वारिधर राम खरारी, पाहि पाहि प्रनतारित हारी। . अनुज जानकी सहित निरन्तर, बसहु राम नृप मम उर अन्तर। 
उत्तर काण्ड
जो करनी समझे प्रभु मोरी, नहिं निस्तार कल्प सत करेगी। असरन सरन विरदु संभारी, मोहि जत्रि तजहु भगत हितकारी। मोरें तुम्ह प्रभु गुर पितु माता, जाऊं कहां तजि पद जलजाता। देहु भगति रघुपति अतिपावनी, विविध ताप भवताप नसावनी। रामचरण वारिज जब देखें, तब निज जन्म सफल करे देखों।
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