रमा एकादशी की कथा
प्राचीन समय में मुचकुन्द नाम का राजा था। उसे ‘एकादशी’ व्रत का पूरा विश्वास था, इससे प्रत्येक एकादशी को ब्रत करता था राज्य की प्रजा पर भी यही नियम लागू करता था। उसके चंद्रभागा नामक एक कन्या थी। वह भी पिता से अधिक इस ब्रत पर विश्वास करती थी। उसका विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ, जो राजा मुचकन्द के साथ हो रहता था। एकादशी के दिन सभी व्यक्तियों ने व्रत किये। शोभन ने भी ब्रत किया किन्तु अत्यंत कमजोर होने से भूख से व्याकुल हो मृत्यु को प्राप्त हो गया।
इससे राजा रानी और पुत्री अत्यन्त दुखी हुए। शोभन को व्रत के प्रभा से मन्दराचल पर्वत पर धनधान्य से युक्त एवं शत्रुओं से रहित एक उत्तम देवनगर में आवास मिला। वहां उसकी सेवा में रम्मादि अप्सराएं तत्पर थीं। अचानक एक दिन राजा मुचकुन्द मन्दराचल पर टहलते हुए पहुंचा तो वहां पर अपने दामाद को देखा और घर आकर सब वृतान्त पुत्री को बताया। पुत्री भी समाचार पाकर पति के पास चली गई तथा दांतों सुख से ही पर्वत पर रम्भादिक अप्सराओं से सेवित निवास करने लगे।