![नारायण - नारायण बोल तोते - कबीर दास जी के भजन लिखे हुए 3 नारायण - नारायण](https://i0.wp.com/blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhalvMzK-vTumL0i5SrV_Z1EtlO0PA1ljqdMbR8kkjGWW8RplPxlsO1FB1YaS9x6xyqJMC-Ot0CPNj4nfW1EXrlZVp6dORfDYjCE4OaMR0-O1ojVQObR72NTwTnNqZaRZiYwX9fhjVf2BYSrYeiALCVZISrTl-sT7i09z8M0bbeoHam-j3_hBJO91Lu/w304-h400/kabir.jpg?resize=304%2C400&ssl=1)
नारायण – नारायण बोल तोते नारायण -२ बोल-कबीर दास जी
नारायण -२बोल तोते नारायण -२ बोल।
हरी पंख तेरी चोंच केशरी, कण्ठा लाल कपोल।।
तूँ तो है पखेरू बेटा, वनों का है वासी प्यारे।
जंगलों में वास करै, लेता है मौज सारे।
खाने को खाता है, गिरी मनखा दाख छुहारे।
इधर उधर को रहे डोलता, करता फिरै किलोल।।
फ़ंदवान ने आन करके, डाल दिया जाल भाई।
पकड़ के गर्दन से तूझको, दिया पिंजरे में डाल भाई।
खाने को देता है, दूध और दाल भाई।
सुबह शाम तेरी परेड कराता, शुद्ध शब्द मुख बोल।।
चेले ही ने समझी नाही, तोते ही ने समझी सैन।
टोटे ही के बंधन खुलगे, सुन कर सद्गुरु जी के बैन।
जब ये हालत देखी सेठ ने, पिंजरा ठाया अपनी गैल।
उलट पलट के देखन लाग्या, दीन्ही खिड़की खोल।।
सद्गुरु बंदी छोड़ ने आकर के छुड़ाए फन्द।
पिंजरे से निकल तोता, मन में हुआ बहुत आनन्द।
सन्तों में बैठ के, मुथरा नाथ गावै छंद।।
सब सन्तों को करै बन्दगी, दीन्ही तराजू तोल।।