Kabir ke Shabd
संगत तो करले साध की, जामे उपजै सै आत्मज्ञान।।
जल देखे सुख उपजै जी, साधु देखे ज्ञान।
माया देखे लोभ उपजै जी, त्रिया देखे काम।।
साधु माई बाप हैं जी, साधु भाई बन्ध।
सन्त मिलावै राम से जी, काटैं वो यम के फन्द।।
सन्त हमारी आत्मा जी, हम संतां की देह।
रोम रोम में रम रहा जी, ज्यूँ बादल में मेंह।।
सत्संग की आधी घड़ी जी, आधी से पुनः आध।
तुलसी संगत साध की जी, हरे कोट अपराध।।