नाम निष्ठा और क्षमा
भक्त हरिदास हरिनाम के मतवाले थे। ये जन्म से मुसलमान थे, पर इनको भगवान का नाम लिये बिना चैन नहीं पड़ता था। फुलिया गाँव मे गोराई काजी नामक एक कट्टर मुसलमान था। उसने हरिदास की शिकायत मुलुकपति से की और कहा- इस काफिर को ऐसी सजा देनी चाहिये जिससे सब डर जायें और आगे से कोई भी ऐसा नापाक काम करने की हिम्मत न करे। इसे सीधी चाल से नहीं मारना चाहिये। इसकी पीठ पर बैत मारते हुए इस पे बाईस बाजारों में घुमाया जाय और बेंत मारते-मारते इसको इतनी पीड़ा हो कि उसी से यह त्तड़प-तड़पकर मर जाय। मुलुकपति ने आदेश दे दिया
Name Fidelity and Forgiveness |
बेंत मारने वाले जल्लादों ने भक्त हरिदास जी को बाँध लिया और उनकी पीठ पर बेंत मारते-मारते उन्हें बाजारो में घुमाने लगे। पर हरिदासजी के मुँह से हरिनाम की ध्वनि बंद नहीं हुईं। जल्लाद कहत्ते-हरिनाम बंद करो।
हरिदास जी कहते – भैया ! मुझे एक बेंत मारो पर तुम हरिनाम लेते रहो इसी बहाने तुम्हारे मुँह से हरि का नाम तो निकलेगा। बेतों की मार से हरिदास की चमडी उधड़ गयी । खून की धारा बहने लगी। पर निर्दयी ज़ल्लादो के हाथ बंद नहीं हुए । इधर हरी के नाम-धुन भी बंद नहीं हुई ।
अन्त मे हरिदास जी बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़े । ज़लादों ने उन्हें मरा समझकर गङ्गग्र जी में बहा दिया गङ्गग़जी के शीतल जल-स्पर्श से उन्हें चेतना प्राप्त हो गयी और वे बहते-बहते फुलिया गांव के समीप घाट पर आं पहुँचे। लोगो ने बड़ा हर्ष प्रकट किया। मुलुकपति को भी अपने कृत्य पर पश्चात्ताप हुआ। पर लोगों में मुलुकपति के विरुद्ध बड़ा जोश आ गया। इस पर हरिदासजी ने कहा इसमें इनका क्या अपराध था । मनुष्य अपने कर्यों का ही फल भोगता है। दूसरे तो उसमें निमित्त बनते हैं फिर यहाँ तो इनको निमित्त बनाकर मेरे भगवानं ने मैरी परीक्षा ली है। नाम मेँ मेरी रुचि है या मैं ढोगी हो क्या हूँ यह जानना चाहा है । मैं तो कुछ था नहीं, उन्हीं की
संत की वाणी सुनकर सभी गद्गद होकर धाय…
कृपा शक्ति ने मुझें अपनी चेतना के अन्तिम श्रास तक धन्य पुकार उठे। मुलुकपति तथा गोराई काजी पर भी नाम क्रीर्त्तन में दृढ़ रखा। इनका कोई अपराध हो तो इनको क्षमा करे। बडा प्रभाव पडा और वे भी नामकीर्तन के प्रेमी बन भगवान् गये तथा हरिनाम लेने लगे।