सेवा-निष्ठा का चमत्कार
मर्यादा पुरुषोत्तम विश्व सम्राट् श्रीराघवेन्द्र अयोध्या के सिंहासन पर आसीन थे। सभी भाई चाहते थे कि प्रभु की सेवा का कुछ अवसर उन्हें मिले। किंतु हनुमानजी प्रभु की सेवा में इतने तत्पर रहते थे कि कोई सेवा उनसे बचती ही नहीं थी। सब छोटी-बड़ी सेवा वे अकेले ही कर लेते थे। इससे घबराकर भाइयों ने माता जानकी जी की शरण ली।