सत्कार से शत्रु भी मित्र हो जाते हैं
पाण्डवों का वनवास-काल समाप्त हो गया। दुर्योधन ने युद्ध के बिना उन्हें पाँच गाँव भी देना स्वीकार नहीं किया। युद्ध अनिवार्य समझकर दोनों पक्ष से अपने अपने पक्ष के नरेशों के पास दूत भेजे गये युद्ध में सहायता करने के लिये। मद्रराज शल्य को भी दूतों के द्वारा युद्ध का समाचार मिला। वे अपने महारथी पुत्रों के साथ एक अक्षौहिणी सेना लेकर पाण्डवों के पास चले। शल्य की बहिन माद्री का विवाह पाण्डु से हुआ था।