लक्ष्मी जी कहानी ( पहली कहानी )
किसी नगर में एक साहूकार के बेटी थी। वह हर रोज पीपल सींचने जाती थी। पीपल में से लक्ष्मी जी निकलती और चली जाती। एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से कहा कि तू मेरी सहेली बन जा। तब लड़की ने कहा मैं अपने पिताजी से पूछकर कल आऊंगी, घर जाकर पिताजी को सारी बात कह दी तो पिताजी बोले वह तो लक्ष्मी है। अपने को क्या चाहिए, बन जा। दूसरे दिन वह लड़की फिर गई। जब लक्ष्मी जी निकलकर आई और कहा-सहेली बन जा तो लड़की ने कहा-बन जाऊंगी। और दोनों सहेली बन गई। लक्ष्मी जी ने उसको खाने का न्योता दे दिया।
घर आकर लड़की ने अपने बाप से कहा कि मेरी सहेली ने मुझे खाने का न्योता दिया है। तब बाप ने कहा कि सहेली के जीमन पर घर संभालकर जाइयो। जब वह लक्ष्मीजी के यहां जीमने गई तो लक्ष्मी जी ने उसे शाल दुशाला ओढ़्ने के लिए दिया, रुपये परखने के लिए दिये। जीमकर जब वह जाने लगी तो लक्ष्मीजी ने पलला पकड़ लिया और कहा मै भी तेरे घर जीमने आऊंगी। उसने कहा-आ जाइयो। घर जाकर बुपचाप बैठ गई। तब बाप ने पूछा कि बेटी सहेली के यहां जीम कर आई है और उदास क्यों बैठी हे? तो उसने कहा-पिताजी मेरे को लक्ष्मी जी ने इतना दिया, अनेक प्रकार के भोजन कराए परन्तु मैं केसे जिमाऊँगी? अपने घर में तो कुछ भी नहीं है। फिर बाप ने कहा कि जैसा होगा, जिमा देंगे।
तू गोबर-मिट्॒टी से चोका लिपकर सफाई कर ले। चार मुख वाला दीया जलाकर लक्ष्मी जी का नाम लेकर बैठ जाइयो। लड़की सफाई करके लड्डु लेकर बेठ गई। उसी समय एक रानी नहा रही थी। उसका नोलखा हार चील उठाकर ले आई और उसका लड्डु ले गई और वह नौलखा हार डाल गई। बाद में वह हार को तोड़कर बाजार में गई और सामान लाने लगी तो सुनार ने पूछा कि क्या चाहिए। तब उसने कहा कि सोने की चोकी, सोने का थाल, दुशाला दे दें। मोहर दें और सारी सामग्री दें। छत्तीस प्रकार का भोजन हो जाए इतना सामान दें। सारी चीजें लाकर बहुत तैयारी करी और रसोई बनाई तब गणेशजी से कहा कि लक्ष्मीजी को लाओ। आगे आगे गणेशजी और पीछे पीछे लक्ष्मी जी आई। उसने फिर डाल दी और कहा-सहेली चौकी पर बैठ जा। जब लक्ष्मी जी ने कहा-सहेली चोकी पर तो राजा रानी भी नहीं बैठे, कोई भी नहीं बैठा तो उसने कहा कि मेरे यहां तो बैठना पडेगा, मेरे मां-बाप, भाई भतीजे, मेरे पोते-बहुए क्या सोचेगी, पड़ोसन क्या सोचेंगी?
लक्ष्मीजी की सहेली बनी थी, अठाईस पीढियों तक यहीं पर रहना पडेगा। फिर लक्ष्मी जी चोकी पर बेठ गई। तब उसने बहुत खातिर की, जैसे लक्ष्मीजी ने की वैसे ही उसने की। लक्ष्मी जी उस पर खुश हो गई। ओर घर में खूब रुपया धन लक्ष्मी हो गई। साहूकार की बेटी ने कहा मैं अभी आ रही हूं। तुम यहीं बैठी रहना और वह चली गई।
लक्ष्मीजी गई नहीं और चौकी पर बैठी रहीं। उसको बहुत धन दौलत दिया। हे लक्ष्मी माता! जैसा तुमने साहूकार की बेटी को दिया वैसा सबको देना। कहते सुनते हुंकारा भरते अपने सारे परिवार को दियो, पीहर में देना, ससुराल में देना। बेटे, पोते को देना। हे लक्ष्मी माता! सब दुख दूर करना, दरिद्रता दूर करना और सबकी मनोकामना पूर्ण करना। दीवाली के दूसरे दिन सब लोग धोक खाओ। औरतें अपनी सासूजी और नन्द के पैर छूकर रुपये देती जायें ओर साथ में लड्डू दें।