रिश्वत बन्द करने का तरीका
एक दिन एक राजा को दावत देनी थी। उसने नौकरों को बड़ी-बड़ी अच्छी प्रकार की मछलियाँ दावत हेतु लाने को कहा। दावत वाले दिन एक भी मछली बेचने के लिए नहीं आया।
राजा सोच में पड़ा हुआ था कि आज कोई भी आदमी मछली बेचने क्यों नहीं आया? राजा द्वारा पूछने पर मंत्रियों ने बताया कि मौसम खराब होने के कारण मछलियाँ पकड़ी नहीं जा सकी होंगी। परन्तु वास्तविक कारण यह था कि राजा के सभी मंत्री रिश्वत खोर थे।
मंत्री ही नहीं अपितु चपरासी से लेकर अंदर तक सभी रिश्वत खोर थे। दरबान प्रत्येक मछली विक्रेता से कहता था कि तुम्हें आधी कीमत हमें देनी होगी, तब ही अंदर जा सकोगे। बेचारे यदि आधी कीमत उन्हें दे दें तो उन्हें फायदे के स्थान पर नुकसान होता था।
थोड़ी देर बार एक मछआरा बहुत सी मछली लेकर बेचने आया। राजा उसे देख कर बहुत प्रसन्न हुआ और उससे मछलियों का मुल्य पूछा। मछुआरे ने उत्तर दिया -जहॉपनाह इनकी कीमत मेरे नंगे शरीर पर सौ कोड़े मारना है।
राजा बोला – तुम यह क्या कह रहे हो? तुम जितने रुपये कहो तुम्हें खजाने से मिल जायेंगे। मछुआरे ने कहा – नहीं महाराज, मुझे तो अपनी मछली। सौ कोड़ों में ही बेचनी है? अन्त में राजा ने सौ कोड़े मछलियों की कीमत स्वीकार कर ली।
जब मछआरे की पीठ पर 50 कोड़े पड़ चुके तो वह बोला – ठहरिए महाराज, इसमें मेरा एक आधे का भागीदार भी है। उसे भी उसका भाग मिलना चाहिए।
राजा ने कहा – क्या इस संसार में ऐसे भी दो मूर्ख बसते हैं? मछुआरा बोला – महाराज, वह कोई और नहीं बल्कि आपका ही दरबान है। वह मुझे अंदर आने के लिए मछली की आधी कीमत माँग रहा था। मैंने उसकी शर्त स्वीकार कर ली तब ही उसने मुझे अंदर आने दिया है।
अतः उसे आधा मूल्य अवश्य मिलना चाहिए। राजा ने दरबान को बुलाकर उसे पचास कोड़े लगवाये तथा इसके बाद उसे नौकरी से निकाल दिया। शेष अन्य लोगों को हिदायत दी गयी की रिश्वत लेता मिला तो उसे पचास कोड़ों का दंड मिलेगा। .
अन्त में राजा ने उस मछुआरे को उसकी की बुद्धिमानी पर बहुत से पुरस्कार से नवाजा