भगवन् नाम से रोगनाश
कुछ वर्ष पूर्व की घटना है। एक सेठ जी गाँजा पीने की आदत से लाचार थे। वे एक बार एक संन्यासी के पास गये और भगवत्-मार्ग में लगने की तदबीर पूछने लगे। जब स्वामी जी को गाँजा की बात मालूम हुई, तब उन्होंने सेठ जी से बात तक भी न की और उन्हें बिदा कर दिया। दूसरे दिन सेठ जी आकर रोने लगे। स्वामी जी ने कहा-‘तुम रात को सोने के पूर्व दस हजार भगवन्नाम ले लिया करो। आश्चर्य! थोड़े ही दिनों में उनकी यह बुरी आदत बिलकुल छूट गयी।
डाक्टरों ने एक विद्वान् सज्जन के खंखार की परीक्षा कर यक्ष्मा घोषित कर दिया। अब तो वे बेचारे क्षयरोग के आतड्क से लगे गलने और लगे जगह-जगह की ख़ाक छानने। सभी प्रमुख डॉक्टर-वैद्यों की शरण में गये और उन सबकी चिकित्सा करायी, पर वह सब निष्फल गयी। एक दिन निराश होकर वे घर से भाग निकले। थोड़ी ही दूर गये थे कि थक गये और हार कर गिर पड़े।
उसी रास्ते से कुछ वैष्णव साधु जा रहे थे जो चिमटे बजा-बजाकर जोर-जोर से ‘सीताराम सीताराम’ गा रहे थे। इन सज्जन ने भी पूरी शक्ति लगाकर ‘सीताराम सीताराम’ कहना शुरू किया। अब वे ‘सीताराम’ मन्त्र- जप की शरण हो गये। पता लगने पर घर वाले उन्हें उठाकर घर लाये, पर उन्होंने ‘सीताराम’ कहना नहीं छोड़ा। कुछ ही दिनों बाद उनकी हालत सुधरने लगी और वे बिलकुल ठीक हो गये।
तदनन्तर उन्होंने इस सीताराम के अतिरिक्त किसी भी डॉक्टर-वैद्य की औषध को-जिसे वे जहर कहते थे, कभी न लेने की ही शपथ कर ली
एक आदमी के सिर में भयानक पीड़ा थी। वह दर्द के मारे कराह रहा था उसको एक दूसरे मित्र ने राम-राम कहकर कराहने की सम्मति दी। पता नहीं उसने क्या किया? पर एक दूसरे सज्जन ने उसे ध्यान में रख लिया, क्योंकि उन्हें भी सिर-दर्द होता था । अब जब उन्हें सिर-दर्द होता, तब वे रामनाम का प्रयोग आरम्भ कर देते। उन्हें तत्काल लाभ होने लगा। अन्त में इस रोग ने उनका पिण्ड ही छोड़ दिया। -जा० श०