देवी जी के दर्शन
एक महात्मा थे। वे एकान्त में देवी जी की पूजा करते थे। एक दिन जब वे पूजा कर रहे थे उनके मन में आया कि माता मुझे दर्शन दें। उसी समय उनको दिखायी कि एक बिल्ली साड़ी पहनकर पिछले दो पैरों से चल पड़ा रहा है।
एक बार तो उनको डर लगा फिर उन्होंने माता से प्रार्थना की कि ‘माँ! अपने पुत्र को इस प्रकार मत डराओ।” उसी समय बिल्ली देवी के रूप में प्रकट हो गयी और उनका चढ़ाया हुआ नैवेद्य देवी जी ने ग्रहण कर लिया।