शराब के दुर्गुण
प्राचीन काल में एक राजा के यहाँ एक पंडित मंत्री थे। | वह हमेशा राजा को बुरी बातों से दूर रखता था । एक बार मंत्री ने देखा कि राजा शराब पीते हैं और मुझ से छिपाते हैं।
मंत्री ने राजा के इस दोष को दूर करने का एक उपाय सोचा। एक दिन मंत्री शराब की बोतल बगल में छिपाते हुए निकलने लगा। राजा बोतल देखकर समझ गया और मंत्री को शर्मिंदा करने की दृष्टि से राजा ने उससे पूछा – आपकी बगल में क्या है?
मंत्री ने कहा – कुछ नहीं? राजा ने फिर पूछा – कुछ न कुछ तो है। ठीक-ठीक बताओ, क्या है?
मंत्री ने उत्तर दिया – तोता है। राजा ने कहा कि नहीं, यह तोता नहीं है? ठीक-ठीक बताओ कि बगल में क्या है? मंत्री ने उत्तर दिया – घोड़ा है। राजा ने फिर पूछा क्या है? मंत्री ने बताया-हाथी है।अबकी बार राजा ने गुस्से में भरकर पूछा – क्या है? मंत्री ने उत्तर दिया – गधा है। अब तो राजा आग बबूला होकर बोले या तो ठीक-ठीक बताओ नहीं तो फॉसी की सजा मिलेगी।
इस बार मंत्री ने राजा के सामने बोतल को रख दिया। राजा बोले कि आप तो कट्टर सनातनी ब्राह्मण बनते थे परन्तु शराब की बोतल लिए जा रहे हो और छिपा भी रहे हो। पंडित जी ने उत्तर दिया – नहीं महाराज! मैंने आपको ठीक ही उत्तर दिया है। राजा ने पूछा कि कैसे?
मंत्री बोला – महाराज! पहिले आपने पूछा था कि क्या है? प्रथम उत्तर के अनुसार पहला प्याला शराब पीने पर तो कुछ भी नहीं है। दूसरे प्याले से आदमी को जुबान तोते की तरह तुतलाने लगती है। तीसरे प्याले से वह घोड़े के समान हिनहिनाने लगता है। चौथे प्याले पर हाथी की तरह मतवाला हो जाता है। पाँचवें प्याले पर वह गधे की तरह हो जाता है।
तथा उसे जहाँ चाहो ले जाओ, जो चाहो वही उसके ऊपर लाद दो और जहाँ चाहे वहाँ लोटने भी लगता है तथा छठे
प्याले पर सब कुछ ज्ञान को छोड़कर वह शराबमय ही हो जाता है।
इसलिए हे महाराज! मैंने आपको वे उत्तर दिये थे। राजा मंत्री के इन तर्कों को सुनकर बड़ा प्रभावित हुआ और शराब पीना छोड़ दिया।