दोहे
वृन्दावन सा वन नहीं, नन्दग्राम सा ग्राम। वंशी बट सा बट नहीं, श्रीकृष्ण नाम सा नाम ॥1॥
राधे तू बड भागिनी, कौन तपस्था कीन। तीन लोक तारन तरन, सो तेरे आधीन॥।2।।
राधे तू मेरी स्वामिनी, मैं राधे को दास। जन्म जन्म मोहे दीजियो, श्री वृन्दावन को वास॥3॥
सब द्वान को छोड़कर, आयो तेरे द्वारा श्री बृषभानू की लाडली, मेरी ओर निहार।|4॥
प्यारी ,झांकी श्याम को, बसी हृदय के बीच जब है 8 करू, झट पट आंखें मीच ।।5।।
स्वामी न बिसारियो, लाख लोग फिर जाय। मुझसे तुमको बहुत हैं, तुमसे मोकूँ नाय॥6।।
मेरी ओर. न देखियो, मैं दोषण की खान। अपनी ओर बिचारियों, प्यारे: कृपा निधान॥।7।।
वृन्दावन के वृक्ष को, मरम न जाने कोया डार डार अरू पात पात, राधे राधे होय॥8।।
जितने तारे गगन में, उतने दुश्मन होया। कूपा हो जब राम॑ की, बाल न बांका होय।।9॥
देवता सब आश्रम गये, शम्भु गये कैलाश। कहते सुनते जायेंगे, श्री हरि चरणों की आस॥10॥
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