विश्वास करके लड़की यमुनाजी में पार हो गयी
एक लड़की थी। एक दिन उसने एक पण्डित जी को कथा कहते हुए सुना कि भगवान् का एक नाम लेने से मनुष्य दुस्तर भव सागर से पार हो जाते हैं।’ उसे इन वचनों पर दृढ़ विश्वास हो गया। एक दिन वह यमुना के उस पार दही बेचने गयी ।वहाँ से लौटते समय देर हो गयी।
इसलिये माझी ने उसे पार नहीं उतारा इसी समय लड़की के मन में आया कि जब एकनाम से दुस्तर भवसागर से पार हुआ जाता है, तब यमुना को पार करना क्या मुश्किल है। बस, वह विश्वास के साथ ‘राधेकृष्ण-राधेकृष्ण’ कहती हुई यमुना जी मेंउतर गयी। उसने देखा कि उसकी साड़ी भी नहीं भीग रही है और वह चली जा रही है।
तब तो और स्त्रियाँ भी उसी के साथ ‘राधेकृष्ण-राधेकृष्ण’ कहकर पार आ गयीं। जब कथावाचक पण्डित जी को इस बात का पता लगा तब वे लड़की के पास आये और कहने लगे ‘क्या तुम मुझको भी इसी तरह पार कर सकती हो। ‘हाँ’ लड़की ने कहा। वे उसके साथ आये। यमुना में उतरे, पर भीगने के डर से कपड़े सिकोड़ने लगे और डूबने के भय से आगे बढ़ने से रुकने लगे। लड़की ने यह देखकर कहा-‘महाराज! कपड़े सिकोड़ोगे या पार जाओगे ?’
पण्डितजी को विश्वास नहीं हुआ। इससे वे पार तो नहीं जा सके, पर उनको झलक-सी पड़ी कि दो सुन्दर हाथ आगे-आगे जा रहे हैं और वह उनके पीछे-पीछे चली जा रही है।