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सन्त का रहनी भजन-५२.
रमता
करम आठ कोइला करि डारे,
जग
अरु
सो निज साधु है। टेक
काया मध्ये धूनी धधकाए,
रमै ।
दम्भ मान मद लोभ मोह से,
स न्यारा रहे।
कल्पना,
माया ममता इनके दर करे।
माया महा कठिन है हरि को,
ज्ञान
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काशी।
भाई।
राम
आठा पहर टरे। साधु०/
हरे ।
बिराग 
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