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चेतावनी भजन ५४
चादर झीनी रे मन झीनी।
ये तो सदा नाम रंग झीनी। टेक
अष्ट कमल दल चरखा चाले, पांच तत्त्व गुन तीनी
कर्म की पूरी कातन बेटी कुकुरी सरति महीनी
खास को तार संभाल के कातो नोमन प्रकृति प्रबीनी
सोलह सुत जुगसी से जग की रचना रची नवीनी
इंगला पिंगला ताना कीनी, सुषुमन भरनी दीनी
नव नास मास बीनते लागे, कोठ कोठ कर बीनी
ले चादर सुन नर मुनि ओढे ओढ़ के मैली कीनी।
ताहि कबीर जुगति से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीनी ।
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