भजन राग केदार १४४
तप,
ततकारा ।
कहै कबीर अमर करि राखो
क्या देखा मन भया दिवाना,
126
पंचम महल देखि रति भूले,
छोड़ी भजन माया लिपटना। टेक
मिल लाना।
अन्त खाक
कफ पित वायु मल मूत्र भरे हैं,
सोई देहिं नर करत गुमाना।
राजा राज छोड़ के जाए,
तप,
ततकारा ।
कहै कबीर अमर करि राखो
क्या देखा मन भया दिवाना,
126
पंचम महल देखि रति भूले,
छोड़ी भजन माया लिपटना। टेक
मिल लाना।
अन्त खाक
कफ पित वायु मल मूत्र भरे हैं,
सोई देहिं नर करत गुमाना।
राजा राज छोड़ के जाए,