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भजन १४३
सन्तों निरंजन जाल पियारा। टेक
विस्तारी।
भव
न हो य उदासा ।
टाम ठाम तीरथ रुचि रोया,
ससारा ।
चौरासी बिच जीव फंसायो,
जारि बारि भस्मी कर डारे,
अवतारा ।
आवागमन रखे उर झाई,
की धारा ।
सतगुरु शब्द बिना नर चीन्हा,
पारा ।
उतार
आप

जो
तो..
सो
गहो
उर
बने
कामूद्यो
मारग
ले
शब्द
अवतारा।
माया फास फसाया जीव सम
तैने धर्म आचारा.
व्यवहारा ।
सत्य पुरुष का अमर लाक है,
द्वारा ।
जासे मिले अखण्ड मोक्ष सुख,
यह
है
प्यारा ।
काल से बचना चाह
निज होय हमारा ।
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