कबीर भजन राग पीलू ११३
भजन बिन कोऊ न जग उबरो।
श्वास-२ पर श्वास आने फेरी स्वांस बहरी।
आवत जात केहू ना देखी रैन दिवस सगरी,
वेद पढ़न्ता पन्डित मर गए योग करन्ता योगी।
करत अचार अचारी मर गए जब काल फंसरी,
कहे ब्रह्मलोक यह दुनियां चौदह लोक यह फंसरी
रहे न धर्म जगत के करता जिससे सृष्टि संघरी
रहे न चन्द सूर्य धन तारा और कौन कही
जल थल नहीं आकाश समाना यहि ना विसरो
धरि न देह शब्द में भाषा बिरले समुझ परी।
कहै कबीर हम युग-युग रूवाला सूरति धरि
भजन बिन कोऊ न जग उबरो।
श्वास-२ पर श्वास आने फेरी स्वांस बहरी।
आवत जात केहू ना देखी रैन दिवस सगरी,
वेद पढ़न्ता पन्डित मर गए योग करन्ता योगी।
करत अचार अचारी मर गए जब काल फंसरी,
कहे ब्रह्मलोक यह दुनियां चौदह लोक यह फंसरी
रहे न धर्म जगत के करता जिससे सृष्टि संघरी
रहे न चन्द सूर्य धन तारा और कौन कही
जल थल नहीं आकाश समाना यहि ना विसरो
धरि न देह शब्द में भाषा बिरले समुझ परी।
कहै कबीर हम युग-युग रूवाला सूरति धरि