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अपने सर को जमा दिया
जगत के नश्वर में फसा
इसकी
जो कि फूले फिरते
ये धर्म के अगुवा करवा दिया
उनकी निज कर्त्तव्य से बिल्कुल विमुख बने
पण्डितों ने ढंग कुछ ऐसे किए बरबाद है
स्वार्थी को बना सत्य कर्म उनसे छुड़ा दिया
कहा तक उनके अनर्थों की कथा सोई कहे
बहुत कुछ थोड़े ही में कबीर ने समझा दिया।

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