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काम बड़ा बलवान – work big strong anmol kahani

काम बड़ा बलवान

मन की चंचलता प्रबल, क्षण मे लेत उड़ान। 
ज्ञानी ध्यानी सब कहें, काम बड़ा बलवान॥ 
एक बड़ा त्यागी, वैरागी, ज्ञानी, ध्यानी, धर्माचारी, ब्रह्मचारी काशीपुर के पास गंगा पार राम नगर के वन में आश्रम बनाकर रहता था। वह प्रतिदिन वेद वेदान्तों का मनन करता हुआ यम नियम, आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारण, ध्यान, समाधि रूप अष्टांग योग के द्वारा आत्मानन्द का भोग किया करता था। उसने शब्द स्पर्श रूप रस गन्ध आदि विषय रोगों को समाप्त कर दिया था। एक दिन उसे किसी शास्त्र का स्वाध्याय करते समय महर्षि व्यास जी के कर कमलों से अंकित निम्न श्लोक दृष्टिगोचर होने पर असम्भव अलाप सा प्रतीत हुआ-
 
काम बड़ा बलवान - work big strong anmol kahani

 

 
मात्रा स्वरत्रा दुहित्रा वानैकान्त स्यानिनो भवेत।
 बलवानिन्द्रिय ग्रामों विद्वां समपि कर्षति॥ 
उन ब्रह्मचारी ने इस एलोक को अनहोनी बात समझकर उस ग्रन्थ में से काट दिया। भगवान वेद व्यास जी अजर अमर होने के कारण उस समय भी जीवित थे।
व्यास जी ने अपने ध्यान योग के सहारे इस तत्व को समझकर सोचा कि यह ब्रह्मचारी बड़ा भोला भाला है। कहीं यह अपने मन की असावधानी से संसार जाल विषय में फँसकर अपना सर्वनाश न कर बैठे इसलिए उसे चलकर ज्ञान करा देना चाहिए।
महर्षि वेदव्यास उस जंगल में गये और अपने तपोबल से अपनी दिव्य योगमाया को फैलाया। केवल इच्छामात्र से ही लावण्यमयी, सजी-धजी, विलक्षण, अदभुत आकृति आकर अपने कोमल विमल अलापों को इधर-उधर हंस पंक्ति की कुंजन के समान भ्रमर माल की सघन घन घटाओं में दामन की दमक चमक के समान रूप यौवन की ललित लावण्यता की लहरों को लहराती हुई मूर्ति से घूमने लगी। चारों ओर सुन्दर स्त्री रूप धारी भगवान वेद व्यास चक्कर लगाने लगे। वह विरहणी हिरनी के समान बिल-बिलाती महाराज के आश्रम में आयी। ब्रह्मचारी को प्रणाम किया और बोली- महाराज! मेरे परिवार के लोग इस तीर्थ में गमन कर रहे थे कि कुछ लुटेरों ने उन्हें लूट लिया और जो बीच में बोला उसकी खूब पिटाई की।
मैं अवसर पाकर अकेली भागकर यहाँ चली आयी हूँ। भगवान की बड़ी कृपा है कि आपके चरणों में मुझे पहुँचाया। मैं आपकी छत्रछाया में रात्रि व्यतीत करके प्रातःकाल होने पर चली जाऊँगी।
ब्रह्मचारी महाराज बोले–हे देवी! यह उदासी, नरासी, बनवासी व्यक्तियों का आश्रम है। यहाँ पर स्त्री के रहने की गुंजायश नहीं है? तुम यहाँ से शीघ्र चली जाओ और नगर में जाकर अपने रहने का बानक बनाओ। इतना सुनते ही लरझाती, मुझाती, घबराती और बिलबिलाती हुई वह बोली -मैं इस अंधकार में तथा घोर भयावनी रात्रि में आगे कैसे जाऊँ?
आप मुझ पर कृपा करो और आज की रात्रि अपने आश्रम में रुकने की आज्ञा दें। यदि आप ही मुझे भगा देंगे तो भला मुझे कहाँ शरण मिलेगी? सुन्दर स्त्री रूपधागी वेद व्यास जी की इस प्रकार विनती ब्रह्मचारी महाराज को दया आ गईं और बोले- अच्छा चलो मैं तुम्हारे रहने के योग्य कुटिया में ले जाता हूँ। वहीं पर आज रात विश्राम कर प्रातःकाल चली जाना।
इतना कहकर आगे-आगे ब्रह्मचारी जी चले और उनकी पीछे महिला चलने लगी। परन्तु महिला की सुन्दरता ने ब्रह्मचारी जी की बुद्धि को अपने वश में कर लिया था। परन्तु ब्रहमाचारी जी ने अपने मन पर काबू किया और जब कुटिया पर पहुँचे तो ब्रह्मचारी ने अपने मन की चंचलता को देखकर पहले से ही अपने मन पर काबू पाना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने उस महिला से कहा- हे सुभागे! आज की रात तुम इस कुटिया में विश्राम करो और अन्दर से कुंडी लगा लेना। यदि कोई तुम्हें किवाड़ खोलने के लिए कहे तो भी किवाड़ न खोलना क्योंकि इस वन में एक बड़ा भयानक  राक्षस रहता है।
हो सकता है कि वह तेरा जैसा रूप धरकर तुम्हारे पास आकर किवाड़ खोलने को कहे तथा वह चाहे कितना ही उपद्रव मचाये परन्तु तुम मुंह से मत बोलना। यदि तुम कुछ बोलोगी तो उसकी त्रास की फाँसी में फँसकर या विश्वास के दलदल में पड़कर किवाड़ खोल दोगी तो वह तुम्हें निश्चय ही खा जायेगा। मेरे सिर पर मुफ्त में पाप लग जायेगा। मैं भी अपनी कुटिया में जाकर विश्राम करता हूँ।
इतना कहकर ब्रह्मचारी वहाँ से चल दिये। ब्रह्मचारी अपने मन को विषय से बड़ी धीरता से मोड़ लिया और ईश्वर के भजन में ध्यान लगाने का प्रयत्न करने लगा। परन्तु जैसे रात्रि व्यतीत होने लगी वैसे ही वैसे उनके मन की तरंग  भी अंग-अंग में समाने लगी। परन्तु ब्रह्मचारी महाराज बराबर मन को विषय एवं चंचलता से हटाते रहे।
परन्तु जैसे जल स्वाभाविक रूप से नीचे की ओर ही बहता है और यदि अनेक उपाय करने पर ही ऊपर को जाता भी है तो जरा सी चूक होते ही नीचे को चल पड़ता है। इस प्रकार ब्रह्चारी जी ने लाखों यत्न करके वासना को रोकना चाहा परन्तु विषय वासना ने ही विजय प्राप्त करी। अब तो ब्रह्मचारी महाराज ने अपनी कुटिया से उठकर उस स्त्री की कुटिया पर पहुँच गये। वहाँ पर उन्होंने कुटिया के द्वार को खुलवाने का प्रयत्त भी किया। वे मधुर स्वर में बोले- हमें तुम से एक परम आवश्यक गुप्त समाचार कहना है, इसलिए शीघ्र ही किवाड़ खोलो ।
यह सुनकर स्त्री वेष धारी महर्षि वेद व्यास मन ही मन में मुस्कराये परन्तु प्रकट रूप में कुछ भी उत्तर नहीं दिया। ब्रह्मचारी जी का हृदय तो कामवासना ने छिन्न भिन्न कर डाला था इसलिए उन्हें एक-एक क्षण कोटि-कोटि कल्प के समान प्रतीत हो रहा था।
ब्रह्मचारी जी ने बार-बार किवाड़ों को खट-खटाया परन्तु जब कुछ भी उत्तर न मिला तो वह अपने मन को समझाने लगे कि वह गहरी नींद में सो रही होगी । वह कुटिया के ऊपर चढ़कर छप्पर का फूस हटाकर अन्दर प्रवेश करना चाहिए।
अन्तर विचारों से विवश होकर उन्होंने अपने विचारों पर अमल किया। परन्तु वहाँ उन्हें विचित्र दृश्य नजर आया। जैसे ही ब्रह्मचारी महाराज कुटिया में कूदे तो उनके मुँह पर वेदव्यास जी का करारा चॉटा पड़ा। दूसरा थप्पड़ पड़ने से ब्रह्याचारी जी के होश ठिकाने आ गये और जैसे ही आँखें खोलकर देखा तो वहाँ उन्हें महिला की जगह महर्षि वेद व्यास दिखाई पड़े।
ब्रह्माचारी जी महाराज त्राहिमाम्‌-त्राहिमाम्‌ कहकर भगवान वेद व्यास जी के चरणों में गिरकर बोले-भगवन! आपने अपनी योगमाया की शक्ति को खूब फैलाया। मिथ्या अहंकार वाली मेरी बुद्धि को दया के डण्डों से खूब जाग्रत किया। मेरी प्रथम भूल ही मुझे दिखा दी जिससे में कभी भी उस भूल-भुलइया में जड़ मूल से न खो जाऊँ और इस अनमोल बेतोल मनुष्य शरीर को धूल में मिलाकर नरक नगर को महा आपत्तियों की ज्वाला में गिरकर भस्म न हो जाऊँ। आप धन्य हो । आपको बार-बार मेरा प्रणाम स्वीकार हो।
भगवान व्यासजी ने गम्भीर वाणी में कहा- हे वत्स! तुम अपने अन्तःकरण में किसी प्रकार की ग्लानि न करो। देखो यह काम वासना बड़ी प्रबल है। इससे सदा बचते रहना।
है भाइयों! यदि तुम वास्तव में इस भयंकर काम-वासना से बचना चाहते हो और अपने मन को अपने वश में करना चाहते हो तो उसका सीधा और सरल उपाय यह है कि तुम अपने इष्टदेव की उपासना करते हुए सात्विक पदार्थों का सेवन करो। धर्मशास्त्रों में बताये गये रास्ते पर चलकर लोक परलोक में सुख के भागीदार बनने का प्रयत्न करो।
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