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पर्वों और त्योहारों का महत्व क्‍यों? – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

पर्वों और त्योहारों का महत्व क्‍यों? 

पर्व ओर त्यौहारों में मनुष्य और मनुष्य के बीच, मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य को सर्वाधिक महत्त्व प्रदान किया गया है। यहां तक कि उसे पूरे ब्रह्मांड के कल्याण से जोड़ दिया है। इनमें लोकिक कार्यों के साथ ही धार्मिक तत्वों का ऐसा समावेश किया गया हे, जिससे हमें न केवल अपने जीवन निर्माण में सहायता मिले, बल्कि समाज की भी उन्नति होती रहे।
पर्व और त्यौहार धर्म एवं आध्यात्मिक भावों को उजागर कर के लोक के साथ परलोक सुधार की प्रेरणा भी देते हैं। इस प्रकार मनुष्यों की आध्यात्मिक उन्नति में भी ये सहायक होते हैं। इसके अलावा ये घर परिवार के छोटे बडे सभी सदस्यों को समीप लाने, मिल बेठने, एक दूसरे के सुख आनंद में सहभागी बनने का शुभ अवसर प्रदान करते हैं और मानवीय उदारता, समग्रता, प्रेम तथा भाईचारे का संदेश पहुंचाते हैं। सूक्ष्म रूप से पर्व और त्योहार में अंतर है। ‘पर्व” सामूहिक रूप से मनाया जाने वाला व्यापक स्तर का कृत्य है, जैसे दीपावली, होली आदि, जबकि त्यौहार इसकी उपेक्षा कम व्यापक स्तर पर मनाया जाने वाला कृत्य हे, जैसे नवरात्र, शिवरात्रि, कार्तिकपूर्णिमा, मौनी अमावस्या आदि। इसी प्रकार जयंतियों को भी त्यौहार के अंतर्गत ही लिया जाता है। ‘त्यौहार’ शब्द ‘तिथि वार’ शब्द का ही अपभ्रंश है, क्योंकि सभी त्यौहार एक निश्चित तिथि और वार के योग पर ही आधारित होते हैं। हिंदूधर्म सदेव आशावादी रहा है। इसलिए हमारे त्योहारों में विजय दिवस और महापुरुषों के जयंती दिवसों को प्रमुख स्थान मिला, पराजय और निर्वाण दिवसों को स्थान नहीं मिला। कुछ त्योहार तो सावदैशिक हैं, जो प्राय: सभी प्रांतों में समान रूप से मनाए जाते हैं ओर कुछ किसी प्रांत विशेष में ही मनाए जाते हैं। इन पर्वों और त्योहारों को मनाने से आपसी भाईचारा, स्नेह संबंध, सदाचरण आदि गुणों की वृद्धि तो होती है, ईश्वर व संस्कृति के प्रति श्रद्धाभाव भी जाग्रत होता हे।
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