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मांग में सिंदूर भरना सुहाग की निशानी क्‍यों? – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

मांग में सिंदूर भरना सुहाग की निशानी क्‍यों? 

महिलाओं में माथे पर कुमकुम (बिंदी) लगाने के अतिरिक्त मांग में सिदूर भरने की प्रथा अति प्राचीन है। यह उनके दा होने का प्रतीक तो हे ही, साथ ही इसे * ७ भी माना जाता है । सुहागिनों के ललाट पर जहां कुमकुम लगा होता ,, वह बिंदु ओर जहां वे मांग भरती है, उस स्थान को शास्त्रों में उनके सोभाग्य का लक्षण माना गया है
ज्योतिष शास्त्र में लाल रंग को काफी महत्व दिया गया हे, क्योंकि यह मंगल ग्रह का प्रतीक है। सिंदूर का रंग भी लाल ही होता है, अत: इसे मंगलकारी माना जाता हे। शास्त्रों में इसे लक्ष्मी का प्रतीक भी कहा गया है।
विवाह के अवसर पर एक संस्कार के रूप में वधू को मांग में वर सिंदूर भरता है। इसे ही सुमंगली क्रिया कहते हैं। इसके पश्चात्‌ विवाहित स्त्री अपने पति की लम्बी आयु की कामना करते हुए जीवन भर मांग में सिंदूर लगाए रखती हे, क्योंकि मांग में सिंदूर भरना हिंदूधर्म की परंपरा के अनुसार सुहागिन होने का प्रतीक माना जाता हे । उल्लेखनीय है कि हमारे शास्त्रों में पति को परमेश्वर का दर्जा प्रदान किया गया है।
हमारे शास्त्रकारों ने मांग में सिंदूर भरने का प्रावधान इसलिए किया, सिंदूर
* में पारा जैसी धातु अधिकता में होने के कारण चेहरे पर जल्द झुर्रियां नहीं पड़तीं।
इससे स्त्रां के शरीर में स्थित वैद्युतिक उत्तेजना नियंत्रित होती है और यह मर्म स्थान को बाहरी बुरे प्रभावों से भी बचाता है। इसके अलावा सिंदूर का पारा स्त्रियों के सिर में होने वाली जूं, लीखों को भी नष्ट करता है।
जिन स्त्रियों के सीमांत या भृकुंटीकेंद्र में यदि नागिन रेखा पडी हो, तो
सामुद्रिक शास्त्र के मतानुसार इसे दुर्भाग्य का सूचक माना गया है। अत: उसके इस दोष के निवारण के लिए भी उसे मांग में सिंदूर भरने की सलाह दी जाती हे।
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